नो कॉस्ट ईएमआई से शॉपिंग करने पर ग्राहकों को सामान की कीमत से ज्यादा दाम चुकाना पड़ेगा।
जब हम ऑनलाइन या ऑफलाइन शॉपिंग करते हैं, तो हमारे सामने नो कॉस्ट ईएमआई का विकल्प मिलता है। ई-कॉमर्स कंपनियां टीवी, हेडफोन आदि खरीदने के लिए यह विकल्प रखती हैं।
ग्राहकों को नो कॉस्ट ईएमआई पर शॉपिंग करने में सावधानी रखनी चाहिए। नो कॉस्ट ईएमआई स्कीम में सामान की वास्तविक कीमत पता होना आवश्यक है। हम सामान की अधिक कीमत देते हैं।
नो कॉस्ट ईएमआई को समझें
किस्तों पर जब हम खरीददारी करते हैं, तो एक निश्चित अवधि तक सामान का अमाउंट तय समय पर देना होता है। इस सामान की खरीदारी के लिए ब्याज भी लगता है। कंपनी कहती है, कि नो कॉस्ट ईएमआई में खरीदे गए सामान पर ब्याज नहीं देना पड़ता। ग्राहक खरीदे हुए सामान के ही पैसे ईएमआई के रूप में कंपनी को देता है।
अर्थशास्त्रियों का कहना, है कि हर चीज की एक कीमत होती है। वित्तीय संस्थानों के साथ कंपनियों ने एक समझौता किया है जिसमें नो कॉस्ट ईएमआई होने के बाद भी कस्टमर से छुपा कर ब्याज लिया जाता है। ग्राहकों को खरीदे गए सामान की असली कीमत जानना जरूरी है।
कंपनियां यह तरीका ज्यादा सामान बेचने के लिए अपनाती हैं। नो कॉस्ट ईएमआई के चक्कर में सामान खरीदने की जल्दबाजी नहीं करना चाहिए। पहले सामान की असली कीमत के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ले। बैंक तो अपना दिया गया डिस्काउंट ब्याज के रूप में वापस ले ही लेता है।
नो कॉस्ट ईएमआई का तरीका
सामान को ग्राहक को देने के लिए कंपनियां नो कॉस्ट ईएमआई स्कीम लेकर आती है। नो कॉस्ट ईएमआई स्कीम 3 तरह से कार्य करती है।
- पहला तरीका नो कॉस्ट ईएमआई पर प्रोडक्ट को पूरी कीमत पर खरीदना पड़ता है। कंपनी ग्राहकों को दिया जाने वाला डिस्काउंट बैंक ब्याज के तौर पर देती है।
इस तरीके में एनबीएफसी के एग्जीक्यूटिव ने बताया कि ग्राहक को प्रोडक्ट की पूरी कीमत पर खरीदना पड़ेगा। इस पर 15 फ़ीसदी ब्याज वसूला जाता है। कंपनी और फाइनेंस कंपनी इस ब्याज को डिस्काउंट के रूप में घटाकर ग्राहक को बताती हैं।
- दूसरा तरीका होता है, कि कंपनी ब्याज की राशि को पहले से ही उत्पाद की कीमत में शामिल कर लेती है।
दूसरे तरीके में प्रोडक्ट की कीमत में पहले से ही ब्याज जोड़कर बताया जाता है। मान लीजिए किसी मोबाइल की कीमत 15000 है लेकिन नो कॉस्ट ईएमआई में इसकी कीमत 17500 रुपए दिखाई देती है। पहले से ही 2500 रुपए ब्याज के रूप में वसूले जाते।
- तीसरा तरीका कंपनी तब अपनाती है जब उसका सामान नहीं बिकता है, तो वह नो कॉस्ट ईएमआई का सहारा ले लेती है।
जब कंपनी का सामान नहीं बिकता है, तो वह सामान बेचने के लिए कंपनी ब्याज की रकम अपने जेब से फाइनेंस कंपनी को दे देती है। क्रेडिट कार्ड की बकाया देनदारी पर 0 फीसदी ईएमआई स्कीम में ब्याज को गलत तरीके से पेश किया जाता है। प्रोसेसिंग फीस के नाम पर ब्याज का बोझ ग्राहकों से ही लिया जाता है। नो कॉस्ट ईएमआई पर सामान खरीदते समय ई-कॉमर्स साइट पर सामान की असली कीमत का पता लगा लेना चाहिए। कहीं कंपनी ईएमआई शुक्रिया प्रोसेसिंग फीस के नाम पर पैसे तो नहीं वसूल रहे। पहले पूरी जानकारी हासिल करें उसके बाद नो कॉस्ट ईएमआई पर सामान खरीदें।