ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
१२५ करोड़ हिंदुस्तानी को सुखी, सम्पन, निरोगी बनाने का तरीका ।
साथ प्रदूषित रहित वातावरण, जल, मिट्टी और ध्वनि
और इसके साथ आधुनिक भारत, प्रकृति को समेटे हुए, परिवार और दोस्तों के बीच ख़ुशी, उल्लास और उमंग के साथ जीवन व्यतीत करना
मेरा भारत महान, सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास
सम्पूर्ण समाधान= Total solution For Pollution Free India
सम्पूर्ण समाधान भाग 1 जलवायु परिवर्तन
आपको भगवान शब्द का अर्थ पता है शायद नहीं अगर हम इसे संधि विच्छेद करें तो
- भ से भूमि
- ग से गगन
- व से वायु
- अ से अग्नि
- न से नीर
इन्हीं पांच तत्वों से इस पृथ्वी नामक रूप का अवतार हुआ है जिसे हम प्रकृति भी कहते हैं इसी प्रकृति में लाखों की संख्या में जीव जंतु और जानवर वास करते हैं हिंदू की मान्यता के अनुसार सभी 8400000 योनियों में समाहित होते हैं।
एक मनुष्य योनि ही ऐसी है जिसमें की अक्ल दी गई है। प्रकृति ने इसको इसलिए अक्ल दी ताकि अपनी स्वयं की रक्षा करें और दूसरों की भी, पर इस मनुष्य रूपी जीवन ने आपस में ही लड़ना चालू कर दिया, तो यह दूसरों कि क्या रक्षा करेगा। अगर हम इसी प्रकार है इन पांचों तत्वों का संतुलन नहीं रखेंगे और इनका शोषण करेंगे तो इन तत्वों को जरा भी देर नहीं लगेगी हमारा अस्तित्व मिटाने में प्रकृति ने बड़ा सोच समझकर निर्णय लिया है की पहले में एक जीव को तो बुद्धि दे कर देखो तो क्या होता है पर उसे नहीं मालूम नहीं था की बुद्धि सफलता की ओर ले जाने के बजाय विनाश की ओर लेकर जाएगी।
प्रकृति के लिए इंसान उतना ही तुच्छ है जितना इंसान के लिए दूसरे प्राणी।
जलवायु परिवर्तन क्या चीज है, वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सदी के अंत तक हमारे धरती का औसतन तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा जिसके कारण हमारे उत्तर धुर्व और दक्षिण धुर्व के पास जमा बड़े-बड़े हिमखंड पिघल जाएंगे उसके फल स्वरूप हमारे समुद्र का जलस्तर 1 मीटर तक बढ़ जाएगा जिससे धरती का बहुत बड़ा हिसा समुद्र में विलीन हो जाएगा।
समुद्र में जल स्तर बढ़ने से ज्यादा वाष्पीकरण होगा उसके कारण हवा बहुत तेज चलेगी, तूफान बनेगा और बरसात की अधिकता होगी, जोकि बड़ी-बड़ी बाढ़ और जलमग्न का कारण होगा।
जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारण हे वनों का कम होना, जीवाश्म ईंधन का अत्याधिक प्रयोग, उद्योगिककरण, शहरीकरण, वाहन आज जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर में बड़ी बड़ी संगोष्ठियाँ आयोजित की जा रही हैं।
जहां बड़े-बड़े बुद्धिजीव अपना विचार रखते हैं की जलवायु परिवर्तन से कैसे लड़ा जाये। तरक्की का मतलब बड़ी-बड़ी गाड़िया, आलीशान महल, महंगे कपड़े, ऊँची इमारतें, लम्बे चौड़े हाईवे, रात भर दारू पीना, नाचना ।
जब मानव ही नहीं रहेगा तो इन का क्या मतलब
सम्पूर्ण समाधान भाग 2 वाहन ( Total solution For Pollution Free India )
आज जब हम महानगर, शहर और गाँव की सड़को पर निकलते हे तो चारो तरफ भागते वाहन नजर आते है। क्या यह हमारे लिए इतना आवयश्क हे की हम इनके बिना हम अपने रोजमरा के काम नहीं कर सकते। आज जब हम महानगर की बात करे तो घंटो हमें एक जगह से दूसरी जगह जाने में लग जाता है। आज इन्ही वाहन के कारण हमारे गाँव और कसबे, शहर और महानगर में तब्दील हो गए।
आज सड़कों पर ऐसा लगता हैं की दुनिया एक दूसरे से भागने की होड़ लगा राखी है इतने शोर में जीवन की शांति और सुख समाप्त होता जा रहा है। आज कार्य के लिए घंटो घंटो सफर करते हैं। ऐसा लगता है की हम जीवन के लिए कार्य नहीं करके, बल्कि कार्य के लिए जीवन जी रहे हैं।
आज इनके कारण प्रदुषण की बहुत बड़ी समस्यां खड़ी हो गई है।
पहले हर गाँव अपने आप में एक सम्पूर्ण व्यवस्था थी, हम अपने घर के ही आँगन में ही रोजमरा की सब्जी की जरुरत पूरी कर लेते। हर घर में गाय होती जो सब्जी के बचे हुए छिलका खाकर हमें दूध देती थी। जो गोबर करती थी वो खेतों में खाद के रूप में इस्तमाल होता था। गांव का कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनता था, कोहलु से तेल मिल जाता था, और शुद्ध घी तो घर में ही हो जाता, तब हम प्रकृति के साथ रहते थे, न न करकट।
पहले हम शारीरिक श्रम करते थे तो शरीर हमारा स्वथ रहता था। आज हम अधिकतर समय टीवी देखने में, व्हाटसप में अथवा ट्रैफिक जाम में फसकर व्यतीत कर देते हैं।
इसी के कारण आज समाज जो पहले संयुक्त परिवार में दोस्तों और रिस्तेदारों के बिच रहता था आज अपनों से दूर चला गया। पहले हम जहाँ घर में बने माँ के हाथों का बना भोजन करते थे, आज हम डिब्बा बंद खाद्य प्रदार्थ एवं भोजनालय में भोजन करते हैं, पहले हम अपने खेतों के मालिक थे आज हम दूसरों के यहाँ नौकरी करते हैं।
हमें भगवान द्वारा जो मानवीय जीवन दिया गया है उस जीवन की समझ का फायदा उठना चाहिए न की हम अपने ही पैरों में कुल्हारी मार ले, हम सब चाहें तो आधुनिकता के साथ प्रकृति को मिश्रित कर सकते हैं।
लगभग १ लाख से ज्यादा व्यक्ति हर साल सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं.
क्या वाहन इतने जरुरी है की इनके कारण हर साल १ लाख लोगों की बलि दी जाती है, क्या आज से १०० साल पहले वाहन थे, तब क्या हमारा गुजारा नहीं चलता था. में तरक्की के खिलाफ नहीं पर इसका यह मतलब तो नहीं की हम हर साल १ लाख लोगों की क़ुरबानी लेले आज जिस घर में दुर्घटना के कारण कोई मुर्त्य को प्राप्त हुआ है तो हमें जाकर उनसे पूछना चाहिए।
लगभग १० लाख व्यक्ति प्रति वर्ष हमेशा के लिए अपंग हो जाते है। उनसे हम उनकी वेदना पूछना चाहिए, इसके साथ साथ २० लाख व्यक्ति को हर साल सड़क दुर्घटना के जख्म से गुजरना पड़ता है।
दिल्ली जैसा महानगर जहां मैं रहता हूं ऐसा लगता है कि मायाजाल के चक्रव्यूह में फस कर रह गए हैं सुबह हम जब मॉर्निंग वॉक पर जाते हैं तो दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों का ऐसा रेला कि हम चाह कर भी सड़क पार नहीं कर सकते साइकिल चलाने वाला तो अपने आपको बचा कर चलता है कि कोई गाड़ी वाला गलती से उसे ठोकना दें।
ट्रैफिक की व्यवस्था पार्किंग की व्यवस्था लोगों को सड़क क्रॉस करने की व्यवस्था ओवर ब्रिज अंडर ब्रिज फ्लाइओवर, जैसे की जिंदगी गाड़ी का पहिया हो गई, भागम भाग बस भागम भाग।
आज सारी सरकार गाड़ियों की व्यवस्था के लिए उपाय कर रही है पैदल चलने वाले साइकिल पर चलने वाला की कोई परवाह नहीं है बड़े-बड़े हाईवे जहां पर गाड़ियां खर्राटे से दौड़ती है पैदल चलने वाला को अगर उसको क्रॉस भी करना चाहे तो नहीं कर सकता। ऐसा नहीं हो कि आधुनिकता वरदान की जगह अभी श्राप हो जाए। स्वास्थ्य से ज्यादा गाड़ियों पर ध्यान दिया जाता है।
एक गाड़ी में घूम रहा है तो दूसरा टू व्हीलर पर, जो की मजबूर है गाड़ीयों की प्रदूषित हवा खाने के लिए। इसी वजह से आज महानगरों में लोग अपने बच्चों को दूर किसी महाविद्यालय में भर्ती करते हैं जहाँ का वातावरण शुद्ध हो।
शांति से जीने वाला प्राणी आज मनुष्य ने इतनी हाय-तौबा क्यों कर लिए इससे हमें किस चीज की प्राप्ति होगी, पता नही।
सम्पूर्ण समाधान भाग 3 उद्योगिककरण
आज हम हिंदुस्तान के संदर्भ में देखते हैं तो हम लोगों ने काम को केंद्रित कर दिया, वही ब्रांडेड उत्पाद दिल्ली जैसे शहर का उदहारण दूंगा तो हर 4 से 5 किलोमीटर पर वह ब्रांड उपलब्ध है। पहले ब्रांड स्थानीय छेत्रफल में उपलब्ध था, फिर जैसे-जैसे संसाधन बड़े वह ब्रांड दूसरी एरिया में फैलता गया और संसाधन बड़े तो वह ब्रांड और ज्यादा फैलता गया इससे धीरे-धीरे जो वहां के स्थानीय उत्पादक है उनकी रोजगारी में दिक्कत आई अब इससे आगे और एक नुकसान हुआ जो काम पहले मैनुअल होता था वह धीरे-धीरे सेमी आटोमेटिक फिर ऑटोमेटिक फिर फुली ऑटोमेटिक और अब तो संसार कंप्यूटर कंट्रोल पर जा रहा है। इससे हम बेरोजगारी और असवाद वाद को जनम दे।
पहले जहां लोग प्रोडक्शन में बिजी थे आज वही लोग मार्केटिंग में ट्रांसफर हो गए।
मार्केटिंग में क्या हुआ, व व्यक्ति एक शहर से दूसरे शहर, दूसरे शहर से तीसरे शहर, ऐसे कर कर के उस का महीना निकल जाता है। अब उसे वहा रहने के लिए होटल चाहिए, वहां जैसा तैसा भोजन मिला वो खा लिया, और हाँ किसी व्यक्ति में कामवासना की जयादा भुख हुई तो उसका भी प्रबन्ध कर लिया। यह यहाँ तक ही सिमित नहीं है बड़ी बड़ी व्यपारिक संस्थाए और बैंकिंग सेक्टर भी हर २ से ३ वर्ष के पश्चात अपने सीनियर अधिकारीयों का तबादला करती रहती है जिसके कारन उसे अपने परिवार को वहीं छोड़ना पड़ता हे या अपने साथ ले जाना पड़ता है, और सारि व्यवस्थाएं पुन करनी पड़ती हे।
अब क्या हो रहा हे कुछ ही उद्योगपति फल फूल रहें हे, चाहे कपडे का, जूतों का सौंदर्य प्रसाधन का व्यपार हो, या इलेक्ट्रॉनिक्स का, गाड़ियों का व्यपार हो, अब तो बड़े बड़े डिपार्टमेंट स्टोर खुल रहे हैं, जो की छोटे छोटे व्यपारी के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी. आज हमारे देश में देखेंगे तो पायेंगे की कैम्पा कोला की जगह कोक ने लेली, अंकल चिप्स की जगह लैस ने लेली। इलेक्ट्रॉनिक्स और यातायात के उद्योगों को काफी हद तक बहार वाले उद्योगों का वर्चस्व हे। भारत इतना बड़ा देश, इतनी यहाँ की आबादी, प्राकृतिक संशाधों से भरपूर, फिर हमें किसकी जरूरत।
विकास का मतलब है कि जीवन को आसान और खुशहाल बनाना ना की तनाव पूर्ण।
पहले लोग एक एक हफ्ता होली जैसे त्योहारों का मनाया करते थे एक एक हफ्ते के लिए शादी का प्रोग्राम होता था लोगों के पास समय ही समय था
आजकल लोग बिना किसी काम के बिजी हो गए
सम्पूर्ण समाधान भाग 4 शहरीकरण
अभी क्या हो रहा है दिल्ली वाले एनसीआर में काम करने के लिए जाते हैं NCR से लोग दिल्ली में काम करने के लिए आ रहे हैं लोगों की आवाजाही बनी हुई है। बड़ी बड़ी गाड़ियां, आलीशान फ्लैट्स, पति पत्नी दोनों मल्टीनेशनल में काम करते हुए, शायद कहीं पत्नी दिन में तो पति रात में, बच्चे या तो दूर किसी बड़े हॉस्टल में या किसी अच्छी निजी स्कूल में, घर में बच्चा हे तो कोई घरेलु सहायक या सहायिका के सहारे, जो की अपनी परिवार की जरूरत पूरी करने के लिए, ऐसे हजारों परिवारों के यहाँ चाकरी करती हुई मेरे विचार से या तो हाउसवाइफ होनी चाहिए या हाउस हस्बैंड होना चाहिए।
सम्पन व्यक्ति क्या कर रहे हैं, दिल्ली जैसे शहर में रहते हैं और यहां से 25 से 50 किलोमीटर दूर अपने लिए गाय बांधते हैं और अपने लिए जैविक खेती को उगाते हैं तो उसके लाने ले जाने का खर्चा पोलूशन इत्यादि अलग से।
एक किसान का बेटा जो अपने खेत का मालिक है आज दिल्ली जैसे शहर में किसी छोटी सी दुकान पर काम करता है वहां पर झाडू पोंछा, साफ सफाई इत्यादि करता है और आज उसकी यह दशा है की उसका मालिक अपने लिए घर से खाना लेकर आता है पर वह खाना उसे नहीं दिया जाता, उसे अपने खाने का इंतजाम खुद बाहर जाकर करना पड़ता है जो बेटा गांव में अपने घर में दूध दही और धी खा रहा था आज वह रूखी सूखी रोटी खाकर अपना जीवन व्यतीत कर रहा है और रात होने पर किसी छोटे से कमरे में जा कर सो जाता है कि कुछ पैसों के लिए शायद उनका कुछ भला हो जाए।
उसको पता ही नहीं लगा की कब वो इतना बड़ा हो गया की वो अपने घर की जिम्मेदारी समझने लगा।
शहर में रहने वालों की घिनौनी सच
आजकल के जीवन की सबसे बड़ी समस्या है की बेटा और बहू शहर में रहते हैं माँ और बाप गांव में रहते हैं और बच्चे भी जो कुछ थोड़े बड़े हो जाते हैं तो काम के सिलसिले में बाहर चले जाते हैं ऐसे में क्या होता है कभी भी किसी की तबीयत खराब होने पर उनको कोई देखने वाला नहीं है और सब एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
जहां सभी जानवर दिन में काम करते हैं और रात्रि को विश्राम वही इंसान आजकल काफी बड़ी संख्या में रात को काम करता है जिससे कि उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है पहले पहले समस्या बहुत बड़ी थी, पर अब इसमें एक विकराल रूप धारण कर लिया है।
आज जब हम अब के माहौल में पहुंचते हैं तो पाते हैं कि 20 से 30 वर्ष की उम्र के लड़के और लड़कियां दारू की गिलास हाथ में लिए हुए सिगरेट के छल्ले बनाते हुए पता नहीं किस चीज की पानी में ललक है उसमें एक क्या मस्ती खोज रहे हैं और इसके पीछे क्या कारण है कि आज की युवा पीढ़ी इस लत में लगी हुई है।
आज दिल्ली मुंबई चेन्नई ऐसे कहीं महानगर और नगर जहां पर रात को 1:01 बजे तक है पब और बार खुलते हैं वहां पर लड़के और लड़कियां दारू पीकर मस्त होकर गाड़ी चलाती है और उससे हादसे हो जाते हैं इससे कोई बड़ी दुर्घटना तो होती है साथ में जिस व्यक्ति ने यह हादसा किया है उसका लिए भी बहुत ज्यादा कठिनाई हो जाती है तो हमें इस से भी मुक्ति मिलेगी।
हजारों की तादाद में लड़के और लड़कियां रात को कॉल सेंटर में काम करते हैं और इनसे उनके स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
शहरों में जितने भी भोजनालय है रात रात को 1:00 से 2:00 बजे तक खुले रहते हैं वहां पर युवा वर्ग मदिरापान करते हैं और भोजन करते हैं इन्हीं भोजनालय में काम करने वालों कि अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है।
हम जब शारीरिक श्रम नहीं करते हैं तो हमारे ब्लड का सरकुलेशन शरीर में प्रॉपर नहीं होता जिसके कारण हमारा दिमाग ढंग से काम नहीं करता उसी कारण हमारे शरीर में नेगेटिव थॉट्स डिप्रेशन जैसी बीमारियां आ जाती है।
संतुलन ही सबसे बड़ी व्यवस्ता हे, यही देश की प्रगति हे और खुशहाली भी
शहरों में प्रदुषण कम करने के उपाय
- बच्चों के स्कूल 2 किलोमीटर तक सीमित कर देना चाहिए
- पूरे देश में ओड और इवन की व्यवस्था करनी चाहिए उसमें टू व्हीलर और लेडीस सभी को शामिल करना चाहिए
- कोई भी प्राइवेट फोर व्हीकल कम से कम दो आधार कार्ड से लिंक हो
- शादी में 400 से ज्यादा की गेदरिंग पर पाबंदी लगा देनी चाहिए।
स्कूल का समय 8:00 से 4:00 ऑफिस का समय 9:00 से 5:00 दुकान का समय 12:00 से 8:00 हर संस्था जहां जयादा व्यक्ति काम करते हैं, वहाँ भोजन की व्यवस्था उस संस्था की नैतिक जिम्मेदारी हो
बढ़िया बंगला बना लो, अच्छी-अच्छी कपड़े पहन लो, बड़ी बड़ी हॉस्पिटल बना लो पर जब शरीर ही स्वस्थ नहीं रहेगा तो इनका क्या आराम चाहे जितनी बड़ी गाड़ी ले लो. पहले हम सुबह से शाम तक शारीरिक श्रम करके शरीर को थका देते थे, जिससे रात को अच्छी नींद आती थी, आज हम दिमाग को थकाने में लगे हैं जो की स्वाथ्य के लिए बहुत हानिकारक हे।
सम्पूर्ण समाधान भाग 5 घरेलु सहायक, एक शर्मनाक व्यवस्था
आया कामवाली बाई नौकरानी या घरेलू सहायक या और किसी नाम से पुकारा जाता होगा सब की एक ही दशा है । आज अगर हम हिंदुस्तान के संदर्भ में देखते हैं तो पाते हैं दिल्ली मुंबई मद्रास कलकत्ता या छोटे से शहर भावनगर करनाल अलवर मदुरै सभी जगह घरेलू सहायक अपनी रोजी रोटी के लिए काम करते हुए मिल जाएंगे यह जो घरेलू सहायक है दिन भर में 12 घंटे तक काम करती है और शायद उनके पति भी बाहर काम करते हैं इनके बाद इन महिलाओं को के बच्चे घर में बुजुर्ग वगैरह होते हैं इनको उसकी भी देखभाल करनी पड़ती है जब यह सुबह काम से निकलती है तो अपने घर में भोजन आदि की व्यवस्था करके जाती है साथ में बच्चो को विद्यायल भेजना, साथ में बर्तन धोना, मकान साफ करना सफाई करना इत्यादि और उसके बाद रात्रि को आकर फिर से इनको भोजन वगैरह की व्यवस्था करनी पड़ती है इनकी ना तो कोई छुट्टी है और ना ही कोई आराम।
आज आजादी के ७० वर्ष पश्चात भी इन लोगों की हालत जस के तस बनी हुई है इनके विपरीत में देखेंगे तो जो यह घरेलू सहायक जहां काम करती है वहां पर जो हाउसवाइफ होती है उनका काम इन लोगों से काम कराना, अपने मनपसंद टीवी सीरियल देखना, अपनी बहनो अथवा सहेलियों से घंटो घंटो फ़ोन पर बातें करना और आजकल तो whatapp पर बैठे रहना या किटी पार्टी वगैरह अटेंड करना। और तो और अगर 1 दिन बर्तन धोने वाली बाई नहीं आई तो पैसे देकर दूसरी बाई से काम करवा लेते हैं क्या हम इतने लाचार हो गए कि हम अपने घर का रोज मरा का काम नहीं कर सकते और अपना बोझ दूसरों के कंधों पर डालते हैं इसी के चलते हमारे अंदर श्रम करने की ताकत खत्म होती जा रही है और यही काम कर कर हम अपना शरीर हष्ट पुष्ट और तंदुरुस्त रख सकते हैं साथ में यह जो मर्द जात है यह अपने आप को किसी शहंशाह से कम नहीं समझते। यह पैसे कमाते हैं पर जब घर में कोई काम करने को कहता है तो इनकी त्योरिआं चढ़ जाती है आज अगर हम हिंदी फिल्मों को देखें चाहे कितनी भी पुरानी फिल्म हो और आज तक हिंदी फिल्मों में फिल्मों में रामू काका अथवा और किसी नाम से यह घरेलु सहायक रोल करते हुए मिल जाएंगे, इससे ना व्यापारी वर्ग, ना सरकारी कर्मचारी, ना ही अच्छी नौकरी वाला इस सेवा से वंचित हैं चाहे वह नेताओं के घर भी क्यों ना हो ।
आज अगर हम किसी भी शहर की बात करेंगे तुम एक उदाहरण देकर समझाता हूं कि हम मुंबई की बात करते हैं वहां पर हर इलाके में उसके साथ झुग्गी झोपरी की भी व्यवस्था होती है और यह घरेलू सहायक उसी गंदे माहौल में अपना जीवन यापन करने को मजबूर है यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मुंबई में जैसे शहर में जितने भी कोठी बांग्ला महंगे फ्लैट्स medium फ्लैट्स हल्की रेंज के फ्लैट सभी जगह यह घरेलू सहायक काम करते हुए मिल जाएंगे। शायद इन की संख्या करोडो में होगी तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी आजादी के 70 वर्ष पश्चात भी अगर हमारे देश में इंसान की ऐसी हालत होगी तो यह देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है हमें इसके लिए विचार और मंथन करना चाहिए और इस समस्या का निजात निकालना चाहिए मैं भी इससे अछूता नहीं हूं।
सम्पूर्ण समाधान भाग 6 निवारण
बढ़ते वाहन, और बढ़ेंगे, रेंगती गाड़िया, बढ़ाता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती बीमारी, बढ़ती समस्या और फिर खोजते इनको दूर करने के उपाय शायद यह एक भयानक त्राश्दी होगी। प्रतिदिन लगभग १ लाख वाहन हिंदुस्तान में निर्मित होते हे
पहले जहाँ इंसान बिखरे हुए गांव में रहते थे आज वहीं पर करोड़ों के समूह में शहरों में रहते हैं यह भी एक बड़ा कारण
है संक्रमण और बीमारी का फैलना। और आसानी से उपलब्ध संसाधनों से हमारे लिए इतना आसान बना दिया की
आज पूरी दुनिया हमारी मुठी में लगती है।
आजकल तो शहरों में कसरत भी वातानुकूलित कमरों में की जाती है।
हमारे जैसे देश जहाँ इतनी आबादी है।
मेरे विचार से हमें शहरों के क्षेत्र को 25 वर्ग किलोमीटर तक सीमित कर देना चाहिए इसके बाद हर 25 वर्ग किलोमीटर तक खेती या हरियाली रहेंगी जैसे की शतरंज के खेल में, इससे हर शहर में रहने की स्कूल की खेती की व्यवस्था होगी और शहर में उद्योग की व्यवस्था होगी जो लोगों को काम दे सके. इससे हमें रोज के काम के लिए वाहन की जरूरत नहीं होगी। जब हम अपने लिए खेती करेंगे तो कीटनाशक और रासायनिक खाद का उपयोग भी नहीं करेंगे जो कि कैंसर जैसी बड़ी महामारी का कारण है।
सड़कों पर चल नहीं सकते क्योंकि प्रदूषण है साइकिल चला नहीं सकते क्योंकि खतरा है. आज साइकिल, दुपहिया
वाहन और पैदल चलने वाले ही सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटना के शिकार होते हैं जिससे भी हमें मुक्ति मिलेगी
आज दिल्ली, मुंबई, चेन्नई जैसे महानगर में हम दूध फल सब्जी 100 किलोमीटर दूर से ले कर आते हैं फिर उसके निपटाने के लिए वापिस 100 किलोमीटर छोड़ कर आते हैं ऐसा ही हम पानी की सप्लाई को लेते हैं फिर उसकी निकासी का प्रबंध करते हैं।
इस व्यवस्था से शहरों में जमीन के दाम कम होंगे और गांव में बढ़ेंगे इससे भारतवर्ष में जमीनों के दाम एक से रहेंगे
और हर व्यक्ति को हर प्रकार की सुविधा मिलेगी। इससे अमीरी और गरीबी का फासला भी कम होगा, साथ में व्यक्ति
जो गांव से पलायन कर रहा है अपने परिवार और दोस्तों के बीच रहेगा।
जीवन की सबसे बड़ी मस्ती क्या है, मेरे विचार से जीवन की सबसे बड़ी मस्ती परिवार और दोस्तों में मजाक हंसी खुशी और बात करना ही जीवन की सबसे बड़ी मस्ती है मेरे विचार से हमें रेलगाड़ी, हवाई जहाज, साइकिल, ई-रिक्शा जिसकी अधिकतम रफ़्तार 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं हो और माल ढोने के वाहन को छोड़कर सब बंद कर देना चाहिए. हर व्यक्ति को प्रतिवर्ष 30 दिनों के लिए
वाहन उपलब्ध कराने चाहिए जो कि हम आधार से लिंक कर सकते हैं, जरूरी सेवा जैसे सेना, एंबुलेंस, दमकल और
अति आवश्यक पदों में बैठने वाले लोगों को छोड़कर,
आज हम ऊर्जा का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं, पहले हम ज्यादा प्रदूषण बढ़ाते हैं फिर उसको नियंत्रण करने के उपाय खोजते हैं इससे सड़के कम होगी, पेड़ों की कटाई कम होगी वातावरण स्वच्छ रहेगा और सबसे बड़ी बात कि हम संसार में कार्बन के उत्सर्जन को कम करेंगे। इससे सभी प्रकार के प्रदूषण में भारी कटौती होगी, जब हम स्वस्थ रहेंगे तो हमें अस्पताल की भी कम जरूरत होगी आज इसी प्रदूषण वातावरण के कारण हमारा शरीर निढाल और गिरा गिरा रहता है।
सबसे बड़ा प्रश्न कि हम इससे रोजगार को कम करेंगे, देखिए दोस्तों प्रकृति ने इतने जानवर बनाए हैं उसमें सिर्फ एक इंसान को ही बुद्धि जीव बनाया है बाकी हर प्राणी भोजन करता है जो की प्रकृति ने भरपूर दिया है और समागम जिससे कि उसका वंश चलता रहे बाकी समय वह बैठ कर ऊंघता है या आलस्य फैलाता है, पर हमारे पास तो बहुत काम है. जैसे खेती, भोजन बनाना, कपड़े धोना इत्यादि। इसके अलावा कपड़े बनाना, मकान बनाना और आजकल के आधुनिक उपकरण। जब हम संयुक्त परिवार में रहेंगे तो दादा दादी का समय पोते-पोतियों से खेलते हुए, ग्रहणी का ग्रह कार्य से और आदमी का जरुरत का सामान इकट्ठा करने में। इसमें सबसे जरूरी है कि हम अपने उद्योग को जरूरत से ज्यादा ऑटोमेशन ना करें, जिससे रोजगार के अवसर ज्यादा होंगे और उसके बाद भी समय है तो खेलों में, वार और दोस्तों से गप लगाने में और शारीरिक कसरत में उपयोग करें। समय बचे तो संकीर्तन और ऊपर वाले की पूजा करने में। साथ में इंसान संयुक्त परिवार में रहता है तो वो जल्दी से गलत रहा में नहीं पड़ता है।
सारांश
शहरों का क्षेत्र २५ वर्ग किलोमीटर तक सीमित कर देना चाहिए इसके बाद हर 25 वर्ग किलोमीटर तक खेती या हरियाली रहेगी जैसे की शतरंज के खेल में, जहाँ रहने की स्कूल की, उद्योग की, अस्पताल की और अन्य जरूरी सेवाओं की उपलब्धता हो ।
निजी वाहन के उपयोग कम से कम हो
सरकार को इसके लिए कानून लाना पड़ेगा, क्योंकि इंसान स्वेछा से कोई काम नहीं करता की संतुलन ही सबसे बड़ी व्यवस्ता हे
आज के लिए सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सामाजिक व्यवस्था को चुस्त और तंदुरुस्त करना
जब आप संयुक्त परिवार में दादा दादी और भाइयों के साथ रहते हैं तो आपकी सोच समझने की और निर्णय लेने की छमता बढ़ जाती ही
पृथ्वी और मानवता को बचाने का यही एक तरीका है यह तरीका सिर्फ हिंदुस्तान के लिए नहीं पूरे पृथ्वी के लिए जरूरी है
आप सुखी हो तो का मतलब नहीं कि सारे हिंदुस्तानी सुखी है पर करोड़ हिंदुस्तानी सुखी है तो आप भी सुखी हो।
जिंदगी जिंदगी ना हुई कोई जंग हो गई।
लेख को अच्छी तरह समझने के लिए तीन से चार बार पढ़ें
अगर आप सहमत है तो इसकी ५० कॉपी ज़ेरॉक्स कराकर अपने मित्रों और रिश्तेदारों को बांटे
कुछ जरूरी बातें
बेरोजगार, वरिष्ठ नागरिक और उन पर आश्रित व्यक्तियों को न्यूनतम ₹2000 प्रति माह प्रति व्यक्ति गांव में और ₹3000 प्रति माह शहरों में सरकार को देने चाहिए जीवन यापन के लिए। यह बात सन 2020 से आगे रहा हूं।
हर एक व्यक्ति सुबह का नाश्ता घर से करके जाए और रात्रि का भोजन घर पर ही ले।
हमें आबादी को कम करने के लिए कानून बनाना चाहिए
एक युवक या शादीशुदा युवक और युवती को एक मकान का अधिकार होना चाहिए विद्यालयों में योग, प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद का अध्ययन कराना चाहिये।