पड़ें डंडे जो सर्दी में तो
हर धरने का दम निकले
बहुत निकले थे पहले लोग
इस जुम्मे को कम निकले
सहर होते ही दिल्ली और
यू पी की पुलिस बोली
इधर मस्जिद से तुम निकले
इधर थाने से हम निकले
बड़ी बग़लें बजाते थे,
ख़ुदा ख़ुद को दिखाते थे,
बहुत करते थे बलवा लोग
अब सबके भरम निकले
सलीके से छिता मौलाना,
उसकी बीबी ये बोली,
‘बहुत निकले मिरे अरमान
लेकिन फिर भी कम निकले’
और कुछ लाइनें यह भी:
कलेजा मुँह को आता है
ख़ुदारा सोच कर मंज़र
लगा जैसे हमारी जान
अब निकले के तब निकले
ख़ुदाया इस तरह कोई
पिटाई किसकी करता है?
के कूल्हे सुर्ख़रू हो जायँ
हाजत में ही दम निकले?
खुदा लम्बी उमर दे शाह,
मोदी और योगी को,
कसम ले लो कभी धरने पे
जो आइन्दा हम निकले।
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