इतिहास में हमने ऐसे बहुत से क्रूर राजाओं और लोगों के बारे में सुना है, जिन्होने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थी, उन्ही में से एक है बांग्लादेश का कसाई। सेना में कार्यरत यह आदमी इतना क्रूर थी जिसे एक नामी मैग्जीन टाइम्स ने इसे बांग्लादेश का कसाई बताया। इस व्यक्ति ने महज के ही दिन में 7000 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतरवा दिया था। चलिए जानते है इस कसाई के बारे में।
टिक्का खान
इस शख्स का नाम है टिक्का खान, पाकिस्तानी सेना का 4-स्टार जनरल था और पाकिस्तान का पहला थल सेनाध्यक्ष। 10 फरवरी 1915को इसका जन्म रावलपिंडी के पास ही एक गांव में हुआ था। भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से पढ़ाई करने के बाद 1935 में टिक्का खान ब्रिटिश भारतीय सेना में भर्ती हुआ था। उसके बाद 1940 में वह कमीशंड ऑफिसर बन गया। उसने जर्मनी के खिलाफ दूसरे विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया था।
1969 में हुआ सब शुरू
भारत पाकिस्तान के बंटवारे में टिक्का खान ने पाकिस्तान जाने का फैसला लिया। इसके बाद दोने देशों के बीच हुए 1965 के युद्ध में टिक्का खान ने पाकिस्तान की ओर से कमान संभाली थी। लेकिन उसकी क्रूरता की कहानी शुरू हुई 1969 में। इस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान बने थे। ठीक उसी समय पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश यानी बांग्लादेश बनाने की मांग ने जोर पकड़ा। इसलिए टिक्का खान को वंहा भेजा गया।
टिक्का खान द्वारा की गई कार्रवाई
टिक्का खान ने पूर्वी पाकिस्तान जाते ही सीधे सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी, जिसे ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ का नाम दिया गया इस ऑपरेशन के तहत टिक्का खान के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने जो किया, उसे शायद ही इतिहास कभी भुला पाए। पूर्वी पाकिस्तान में हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ढाका में तो एक ही रात में सात हजार लोगों को मार दिया गया। क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या महिलाएं, किसी को भी नहीं बख्शा गया।
कुछ ही महीनो में हुए 2 लाख रेप
रॉबर्ट पेने द्वारा बांग्लादेश के इस नरसंहार पर किताब लिखी थी। इस किताब में बताया गया कि टिक्का खान के इस दहशतगर्दी के बीच 9 महीने में ही करीब 2 लाख लड़कियों से बलात्कार किए गए इसके बाद ही टाइम मैगजीन ने टिक्का खान को बांग्लादेश का कसाई कहा था।
पाकिस्तान में मिला प्रमोशन और हुई मौत
बांग्लादेश की लड़ाई खत्म होने के बाद टिक्का खान पूरी दुनिया में बदनाम हो गया।यहां तक कि पाकिस्तान में भी कई लोगों ने उसकी इस करतूत को गलत बताया, लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तानी सेना में उसकी पैठ और मजबूत हो गई। उसका प्रमोशन होता चला गया और तीन मार्च 1972 को वो पाकिस्तान का पहला पहला थल सेनाध्यक्ष बन गया। वो इस पद पर करीब चार साल रहा और उसके बाद रिटायर हो गया। 28 मार्च 2002 को 87 साल की उम्र में रावलपिंडी में उसकी मौत हो गई।