अरब देश की जलवायु कुछ वनस्पतियों के लिए अच्छी है। दुनिया में बहुत सारे ऐसे देश हैं, जहां पर जलवायु प्रतिकूल होती है। पानी भी बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। रेतीली मिट्टी और पहाड़ के होते हुए भी वहां पेड़ पौधे अच्छी तरह उगते हैं। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों वाली जगह पर भी पेड़ पौधे अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हैं। अरबी पौधा उपयोगी और एंटीबैक्टीरियल होते हैं।
अरब के प्रमुख पेड़
खजूर का पेड़
सऊदी अरब में खजूर के पेड़ को प्रमुखता दी जाती है। खजूर के पेड़ 21 से 23 मीटर तक ऊंचे होते हैं। इनमें नर और मादा दोनों ही प्रकार के अलग अलग पेड़ पाए जाते हैं। अरब की वनस्पतियों में खजूर का पेड़ महत्वपूर्ण होता है। रमजान के महीने में पूरी दुनिया में खजूर का महत्व बढ़ जाता है। खजूर के फल मादा पेड़ों से ही मिलते हैं। पिंड खजूर को अरबी भाषा में तमर कहते हैं। हिंदुस्तान में भी खजूर पाया जाता है। अरबी लोग जब हिंदुस्तान में आए तो उन्होंने भारतीय खजूर को चखा तो इसे तमर ए हिंद नाम दे दिया।
जैतून व जैस्मीन के वृक्ष
जैतून के तेल की मालिश की जाती है। जैतून के तेल को खाने में भी उपयोग मैं लाया जाता है। जैतून का पेड़ का औषधीय उपयोग तो है ही आर्थिक महत्व भी है। जैतून का वैज्ञानिक नाम ओलिया यूरोपिया है। जैतून के अध्यक्ष 1000 साल से भी अधिक पुराने मिल सकते हैं। जैतून को सर्दियों के मौसम में समृद्धि और खुशियों को बढ़ाने वाला माना जाता है। जैस्मीन भी जैतून कुल का ही पौधा है। जैस्मीन पौधे की 200 से भी अधिक प्रजातियां अरब में पाई जाती हैं। छोटे बच्चों को जैतून के तेल की मालिश की जाती है।
हिना का वृक्ष
हिना भी अरब की जलवायु में पैदा होने वाला पौधा है। हिना अर्थात मेहंदी का पौधा इसका उपयोग शादियों में खूबसूरती बढ़ाने के लिए हाथों पैरों में लगाया जाता है। मेहंदी को बालों में भी उपयोग किया जाता है। ईरानी लोग मानते हैं कि हिना बुरी आत्माओं से रक्षा करती है और परिवार को खुशियां प्रदान करती है। हिना एक झाड़ीदार वृक्ष होता है। हिना में झाड़ियों पर छोटी-छोटी पत्तियां लगती हैं। तने पर कांटे भी पाए जाते हैं। हिना के फूलों का उपयोग इत्र बनाने में किया जाता है। मेहंदी की पत्तियां पीसकर इनका पाउडर बनाकर रख लेते हैं। शरीर को ठंडक देने के लिए भी हिना का प्रयोग किया जाता है। भारत देश में रेगिस्तानी क्षेत्रों जैसे हरियाणा और राजस्थान में हिना के पौधे की खेती की जाती है। अरबी पौधा हिंदुस्तान किस प्रकार पहुंचा यह कोई नहीं जानता। भारत में दो मेहंदी का उपयोग दुल्हनों को सजाने और व्रत-त्योहार के समय महिलाओं का प्रमुख श्रृंगार हुआ करता है।
मिस्वाक का वृक्ष
अरब देशों में मिस्वाक पौधों की टहनियों का उपयोग दातून के लिए किया जाता है। इस पौधे का वैज्ञानिक नाम साल्वाडोरा पर्सिका है। यह नाम ईरानी पद्धति से प्राप्त हुआ है। मिस्वाक के वृक्ष की छोटी-छोटी टहनियों का उपयोग प्राकृतिक टूथब्रश की तरह करते हैं। यह सबाना के घास मैदानों में मिलते हैं। रेगिस्तान और नदियों के किनारे मिस्वाक का पौधा आसानी से मिल जाता है। इस पौधे की फूल, फल और पत्तियां सभी उपयोगी होती हैं। इसके फलों को काव्य सुखाकर दोनों प्रकार से खाया जाता है। इसे अर्क का वृक्ष भी कहा जाता है।