आज शिक्षा, कला, संस्कृति, पत्रकारिता आदि में वामपंथी हावी हैं। इस खतरे को भांप कर आजादी के समय से ही हिन्दू विचार के पक्ष में बौद्धिक जनमत जगाने में अग्रणी प्रज्ञा पुरुष श्री रामस्वरूप जी का जन्म 12 अक्तूबर 1920 को हुआ था।
उन्होंने गृहस्थी के बंधन में न बंधते हुए वैचारिक संघर्ष को ही अपना जीवन-लक्ष्य बनाया। सीताराम गोयल और कोलकाता के उद्योगपति लोहिया जी से उनकी अभिन्नता थी। इन दोनों को रामस्वरूप जी ने कम्युनिस्टों के वैचारिक चंगुल से निकाला था।
इन तीनों ने मिलकर खोखले वामपंथ के विरुद्ध वैचारिक आंदोलन छेड़ दिया। इसमें लोहिया जी ने आर्थिक सहयोग दिया, तो बाकी दोनों ने वैचारिक। 1948 में रामस्वरूप जी की अंग्रेजी में एक लघु पुस्तिका ‘कम्युनिस्ट खतरे से हमें लड़ना होगा’ प्रकाशित हुई। इससे इस संघर्ष का शंखनाद हुआ।
रामस्वरूप जी और सीताराम जी ने मिलकर 1949 में ‘प्राची प्रकाशन’ स्थापित किया। इससे प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘रूसी साम्राज्यवाद को कैसे रोकें’ को ऋषि अरविन्द का आशीर्वाद मिला। बर्टेंड रसेल, फिलिप स्पै्रट और आर्थर कोएस्लर जैसे पूर्व कम्युनिस्ट चिन्तकों ने भी इसे बहुत सराहा। सरदार पटेल ने इसे पढ़कर उन्हें इस दिशा में संगठित प्रयास करने को कहा।
21 फरवरी, 1951 को रामस्वरूप जी का लेख ‘भारतीय विदेश नीति का आलोचनात्मक विश्लेषण’ मुंबई के श्री अरविंद सर्किल की पाक्षिक पत्रिका ‘मदर इंडिया’ में प्रकाशित हुआ। इस लेख से रामस्वरूप जी की दूरदृष्टि का पता लगता है। उन दिनों जब भारतीय राजनीति, प्रचार माध्यमों और शिक्षित जगत पर वामपंथ का नशा चढ़ा था, रामस्वरूप जी और सीताराम गोयल ने विपुल साहित्य का सृजन कर उन्हें जबरदस्त बौद्धिक चुनौती दी। उन्होेंने ‘सोसायटी फॉर डिफेंस ऑफ़ फ्रीडम इन एशिया’ नामक मंच की स्थापना भी की।
उनके इस अभियान से भारतीय कम्युनिस्ट तिलमिला उठे। चूंकि वैचारिक संघर्ष में वे उनके सामने कमजोर पड़ते थे। मास्को में ‘प्रावदा’ और ‘इजवेस्तिया’ जैसे पत्रों ने, तो भारत में स्वाधीनता जैसे वामपंथी पत्रों ने उनके विरुद्ध जेहाद छेड़कर उन्हें सी.आई.ए. का एजेंट घोषित कर दिया। रूस, चीन आदि में वामपंथ की वैचारिक पराजय की बात वे प्रायः बोलते थे।
1954 में उन्होंने कोलकाता में पुस्तक प्रदर्शनी में अपनी पुस्तकों का स्ट१ल लगाया। उसकी रक्षा संघ के कार्यकर्ताओं ने श्री एकनाथ रानाडे के नेतृत्व में की। इस प्रकार संघ से उनका परिचय हुआ, जो फिर बढ़ता ही गया। सर्वश्री दत्तोपंत ठेंगड़ी, रज्जू भैया, शेषाद्रि जी, सुदर्शन जी आदि वरिष्ठजनों से उनकी कई बार भेंट हुई।
रामस्वरूप जी का हिन्दू धर्म के साथ ही इस्लाम और ईसाइयत पर भी गहरा अध्ययन था। ‘हदीस के माध्यम से इस्लाम का अध्ययन’ तथा ‘हिन्दू व्यू ऑफ़ क्रिश्चियनिटी एंड इस्लाम’ का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ। इसके प्रकाशन से कट्टरपंथियों में हलचल मच गयी; पर तथ्यों पर आधारित होने के कारण उसे चुनौती नहीं दी जा सकी।
1957 में सार्वजनिक जीवन से विरत होकर वे अध्यात्म की ओर उन्मुख हो गये; पर अध्ययन और लेखन का उनका क्रम जारी रहा। हिन्दू समाज पर हो रहे बाहरी हमलों की तरह ही वे हिन्दू समाज की आंतरिक दुर्बलताओं से भी बहुत दुखी थे। उन्होंने इस दिशा में भी चिंतन और मनन किया।
कोलकाता की ‘बड़ा बाजार कुमार सभा’ द्वारा ‘डा. हेडगेवार प्रज्ञा पुरस्कार’ से सम्मानित ऐसे भविष्यद्रष्टा, वैचारिक योद्धा और गांधीवादी ऋषि रामस्वरूप जी का 26 दिसम्बर, 1998 को शरीरांत हुआ ।