21वीं सदी के दूसरे दशक का अंतिम वर्ष यानी 2020 काफी मुसीबतों से भरा हुआ बीता है। सन् 2020 मुख्य रूप से वैश्विक महामारी के लिए जाना जा रहा है क्योंकि भयंकर महामारी (कोरोनावायरस) के प्रकोप से इस वर्ष लाखों लोगों की मृत्यु हो गई।
यह बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि अभी तक पृथ्वी के इतिहास में सबसे गर्म समय 2010 से 2020 के रूप जाना जाएगा। नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 इतिहास के सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया है।
यह मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ है, जो “चरम मौसमी घटनाओं” की बढ़ोतरी के रूप में उभर कर सामने आया है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पृथ्वी पर आए विशाल चक्रवात, सूखा व बाढ़ जैसी अनेकों घटनाएं बार-बार आने के कारण भयंकर रूप धारण करती जा रही हैं। जैसा कि आए दिन देखने को मिलता है भीषण गर्मी और शीतलहर वाले मौसम में अब पहले के मुकाबले में कहीं ज्यादा और अनियमित परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं।
इस साल कश्मीर में रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी, पंजाब, दिल्ली में कड़ाके दार सर्दी और इसके विपरीत मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में ठंड का कम पड़ना मौसम के मिजाज के बहुत बड़े उदाहरण माने जा सकते हैं।
चरम मौसम क्या है?
वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार चरम मौसम को एक्सट्रीम वेदर भी कहते हैं जिसका मतलब कोई मौसम जैसे बारिश, ठंड और गर्मी अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए या तो अधिक प्रभाव डालती है या सरल शब्दों में कहा जाए तो जैसा मौसम होना चाहिए उसके विपरीत होता है तो इसी को चरम मौसम कहते हैं। चरम मौसम से संबंधित घटित हुई घटनाएं जैसे पश्चिम भारत के कई राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में ठंड के मौसम में ठंड का ना होना, कश्मीर में रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी होना इत्यादि।
क्यों हो रहे है मौसम में यह बड़े बदलाव
मौसम में हो रहे भयानक परिणामों को अक्सर देखा जा सकता है। इनका मुख्य कारण पृथ्वी की जलवायु में हो रहे परिवर्तन को माना जा सकता है। पृथ्वी का बढ़ता निरंतर तापमान का मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैसों का निरंतर बढ़ना है। जीवाश्म ईंधन को जलाने, खनन, बांध और अन्य बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए जंगलों को खत्म करने से कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा वायुमंडल में निरंतर बढ़ रही है जिसके फलस्वरुप पृथ्वी के वायुमंडल में गर्माहट बढ़ रही है। वायुमंडल में मानवजनित एरोसॉल के अत्याधिक होने के कारण विकिरण प्रणाली प्रभावित हो रही है। मानवजनित एरोसॉल गैस के साथ ठोस कणों या तरल बूंदों का मिश्रण होता है। इसके कारण विकिरण प्रणाली प्रभावित होने से वर्षा जल में अनियमितता देखने को मिलती है।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार 1950 से 2015 के समय मध्य भारत में एक दिवसीय अत्यधिक (150 मिलीमीटर से अधिक) वर्षा की आवृत्ति में 75 परसेंट बढ़ोतरी हुई है। भारत में कुछ स्थानों पर जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा भयंकर प्रकोप देखने को मिल रहा है, कि जहां पर पानी की कमी रहती है वहां पर इतनी अधिक वर्षा होती है कि वह इलाका बाढ़ से ग्रस्त हो जाता है। हाल ही में वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक द्वारा प्रकाशित हुई रिपोर्ट के अनुसार 2018 में मौसमी घटनाओं द्वारा सबसे प्रभावित देशों की लिस्ट में भारत पांचवें स्थान पर है।