Sunday, December 22, 2024
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बिहार के गया धाम में प्रेतशिला नाम की एक रहस्यमयी चट्टान

by Pratibha Tripathi
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आत्‍मा और प्रेतआत्‍माओं से जुड़े किस्से कहानियां तो आपने अपने घर के बड़े बजुर्गों से काफी सुनी व पढ़ी भी होगें… जिसकी सच्चाई को कहीं ना कहीं विज्ञान भी स्वीकार करता है कि हमारे आसपास नाकारात्मक चीजें होती है… कहते हैं कि जब इंसान अपने शरीर को छोड़ता है तो सीधे मृत्यूलोक की योनि में अपने पापों को धोने के लिये पहुंच जाता है… उन्हें तृप्त करने के लिये हमारी धरती में लोग श्राद्ध पक्ष करते है जिससे मरे हुए लोगों की आत्‍माएं को शांति मिलें.. और इसी शांति की तलाश में वो खुद भी धरती पर उतर आतीं है और अपने परिवार के लोगों को किसी ना किसी माध्‍यम से उऩके आस पास होने का अहसास कराती है..

ऐसी ही इस धरती में रहस्‍य और रोमांच से भरी एक जगह है जहां पर आज भी आत्माएं आती है.. उस जगह का नाम है गया… यह स्‍थान अपने आप में विचित्र और डरावना है… ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में यहां पितरों का आगमन होता है और पिंड ग्रहण करके वे परलोक वापस चले जाते हैं…
क्या आप भी जानना चाहेगें उस स्थान के बारे में, क्‍या है इसका महत्‍व… मोक्ष की धरती के नाम से बिहार के गयाधाम में प्रेतशिला नाम की एक रहस्यमयी चट्टान है जिसपर पिंडदान किया जाता है और ऐसा करने से प्रेत आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है…

गयाधाम में प्रेतशिला पहाड़ के ऊपर दिखने वाली इस बड़ी चट्टान का संबंध सीधे परलोक से माना जाता है… गरुड़ पुराण के अनुसार, इस शिला की दरारों से ही पितरों का आगमन होता है और वे पिंड ग्रहण करके अपने लोक वापस लौट जाते हैं… ऐसा भी माना जाता है कि इस पत्थर के बीच की दरारों से प्रेतलोक से आत्मा आती-जाती है… मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के भक्त गयासुर के शरीर पर बसी है गया नगरी… गयासुर ने ही भगवान से ही यह वरदान मांगा था कि जो भी इंसान मृत्यूलोक को प्राप्त करता है… और यहां पर उसका पिंडदान किया जाता है तो आने वाले उऩ जीवों को नरक नहीं जाना पड़ेगा… गयासुर के इस वरदान के प्राप्त होने के कारण से ही यहां पर श्राद्ध और पिंडदान करने से आत्मा को तुंरत ही मुक्ति मिल जाती है…

प्रेतशिला के बारे में कहा जाता है कि यहां अकाल मृत्‍यु को प्राप्‍त होने वाले लोगों के लिये इस स्थान पर श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष महत्‍व है… मान्‍यता है कि इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण कर लेते हैं… ऐसा होने के बाद उन्‍हें कष्‍टदायी योनियों में जन्‍म लेने की आवश्‍यकता नहीं पड़ती…

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