संसार का प्रत्येक जीव अपने स्वरूप, आकार व प्रकृति के अनुरूप किसी ना किसी स्थान विशेष पर रहा करता है।
मनुष्य हो या पशु पक्षी उसका निवास स्थान धरती ही हो सकती है। प्रकृति ने अपने भिन्न एवं अलग-अलग स्थानों, रूपा एवं आकार के अनुसार धरती को बांट रखा है।
मनुष्य या अन्य प्राणी धरती के जिस भाग पर निवास करते हैं, सामान्यतः उस भाग भूभाग को उसका देश कहते हैं। अपना छोटा सा घोंसला हो या गुफा, झोपड़ी हो या मकान, या फिर विशाल भवन या महल, उसके साथ उसका भावात्मक लगाव हो जाना बड़ा स्वाभाविक है। उस भावात्मक लगाव के फलस्वरूप ही वह निवास और वह धरती, जिस पर मेरा निवास बना हुआ है, वह भू भाग यानी वह देश मुझे अपनी जान से भी प्यारा है।
देश
मनुष्य या वहां रहने वाले प्राणी, अपने देश को निर्जीव प्राणी मानकर नहीं बल्कि सजीव मानकर ही उसे अपने प्राणों से भी ज्यादा प्रेम करते हैं, कहा भी गया है “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात माता एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी ज्यादा गरिमामय होती है। इसी को वास्तव में देश प्रेम भी कहा जाता है।
देश प्रेम का अर्थ
जिस धरती के भाग पर कोई मनुष्य निवास करता है, उससे पालन पोषण और जीवन प्राप्त करता है। उस जड़ चेतन, छोटे बड़े प्रत्येक प्राणी एवं पदार्थ के साथ अपनत्व स्थापित कर, सभी कुछ के साथ पूर्ण परिचय प्राप्त कर उन्हें प्राणवायु के समान ही अपनी आवश्यकता मानना ही देश प्रेम का वास्तविक अर्थ होता है। सच्चे देश प्रेमी के लिए अपनी धरती, अपने पर्यावरण का एक तिनका भी तुच्छ होकर महत्वपूर्ण हुआ करता है। मिट्टी का प्रत्येक कण हीरे मोती के समान बहुमूल्य हुआ करता है। यही भाव प्राणी को उस पर मर मिटने और बलिदान हो जाने का प्रत्येक तत्व माना गया है।
बिना धरती के कण-कण से परिचित हुए उसके साथ अपनत्व का गहरा भाव स्थापित किये बिना देश प्रेम की वास्तविक भावना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पशु पक्षी तक इस सहज प्राकृतिक नियम एवं प्रेरण को समझते हैं, फिर मानव जाति का तो कहना ही क्या?
देश प्रेम का महत्व
देश की भूमि से उत्पन्न होकर हर प्राणी उसके तत्वों, पदार्थों से अपना पालन पोषण किया करता है। उसके रसों का पान कर प्राणी के शरीर में रक्त एवं अन्य सभी प्रकार की रसों का संचार हो पाता है। उसके सारे कार्य उस पर आश्रित हुआ करते हैं। यहां तक कि देश का अस्तित्व बने रहने पर ही प्राणी अपना अस्तित्व बनाए रख सकता है। देश यदि स्वतंत्र और संपन्न है, तभी वहां के रहने वाले स्वतंत्र और संपन्न रह सकते हैं। देश के होने और उसके स्वतंत्र बने रहने के इस महत्व को समझ कर ही जागरूक और देशभक्त मनुष्य शुरू से ही उसकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करते आ रहे हैं। किसी कारणवश देश के पराधीन परतंत्र हो जाने पर उसके स्वाधीन और स्वतंत्र बनाने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करते, आंदोलन चलाते और अपने प्राणों की बलि देते आ रहे हैं। देश का इस प्रकार का महत्व समझने वालों के लिए ही वह प्राणों से अधिक प्रिय हुआ करता है।