बच्चे पैदा करना मुश्किल होता है लेकिन उससे भी ज़्यादा मुश्किल होता है बच्चों के चरित्र का निर्माण। दुनिया में हर कोई बच्चे पैदा करता है लेकिन जब बात देखभाल या पेरेंटिंग (Parenting) की आती है तो ऐसे में कुछ ही लोग होते हैं जो इस स्तर को सफलतापूर्वक पार करने में सक्षम होते हैं। पेरेंटिंग (Parenting) एक बेहद ज़रूरी चीज़ है जो ना सिर्फ़ बच्चों के भविष्य का निर्धारण करती है बल्कि उनके चरित्र के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाती है।
आप सोच भी नहीं सकते कि ग़लत तरीक़े से की गई पेरेंटिंग (Parenting) बच्चों को किस हद तक नुक़सान पहुँचाती है। इस लेख में हम आज अच्छी पेरेंटिंग (Parenting) के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे। ये ऐसे बिंदु हैं जिन पर हर माता पिता को ध्यान देना चाहिए।
1. रिश्तों की अहमियत
भले ही आप एकल परिवार में क्यों न रहते हों, अपने बच्चों को रिश्तों की अहमियत बताना बिलकुल न भूलें। हो सकता है कि परिवार के झगड़े के चलते आप अपने बच्चों और पत्नी के साथ अलग रहते हों लेकिन बात जब बच्चों की देखभाल की आती है तो उन्हें इस तरह के झगड़ों के बारे में ना बता कर उन्हें उनके रिश्तों से अवगत कराना चाहिए। अपने बच्चों को उनके दादा-दादी, चाचा-चाची, नाना-नानी आदि रिश्तों के बारे में अवश्य बताएँ। याद रखें आपके पर्सनल झगड़े आपके बच्चे के जीवन में नहीं आने चाहिए।
2. संयम व्यवहार
बच्चे जो देखते हैं उसे अपनी ज़िंदगी में लागू करते हैं। बच्चे बतायी गई बातों को कम देखी गई बात को अपने जीवन में ज़्यादा लाते हैं इसलिए बच्चों के सामने घर वालों या माता पिता का व्यवहार संयम होना अत्यंत आवश्यक है। अगर परिवार का कोई भी सदस्य बच्चों के सामने गाली गलौच, मारपीट या उल्टी सीधी हरकतें करता है तो ये सारी चीज़ें बच्चा अपने आप सीख लेगा। कल को बच्चा भी यही व्यवहार करेगा तो दुनिया के सामने आपकी नाक कटेगी।
साइकोलॉजी में एक विषय हैं जिसे DSM कहते हैं। डीएसएम/DSM के कई भाग हैं। इसी DSM में अच्छी और बुरी पेरेंटिंग (Parenting) का बच्चे के भविष्य के साथ संबंध बताया गया है। साइकोलॉजिस्ट का मानना है कि बच्चा माता-पिता के व्यवहार से सीधे तौर पर प्रभावित होता है। यह व्यवहार बच्चे के दिल और दिमाग़ में इस तरह बैठते हैं कि वह इन चीज़ों को अपने चरित्र में शामिल कर लेता है।
उदाहरण के तौर पर यदि कोई लड़की यह देखती है कि उसका पिता उसकी माता को मारता-पीटता है या गाली देता है तो ऐसे में बहुत संभावना है कि आगे चलकर वह लड़की समस्त पुरुष प्रजाति से नफ़रत करने लगेगी। यही चीज़ लड़कों पर भी लागू होती है और ऐसे में हम ये कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उस बच्चे का जीवन नॉर्मल होगा। बेहतर है अपना व्यवहार संयम रखें और अपने बच्चे की पेरेंटिंग (Parenting) अच्छी करें।
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3. सही खानपान और स्वच्छता का पाठ (Parenting)
हेल्दी लाइफ़स्टाइल के बारे में एक पाठ होना बेहद ज़रूरी है। ये पैरेंट्स और घर वालों की ज़िम्मेदारी है कि वे सही खानपान और स्वच्छता की आदतों को लेकर बच्चे की अच्छी पेरेंटिंग (Parenting) करें। अपने बच्चों को समझाएँ कि सही खाने पीने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा जीवन में सकारात्मकता आती है।इसी प्रकार बच्चों को सिखाएं कि उन्हें न सिर्फ़ ख़ुद को साख साफ़ रखना चाहिए बल्कि अपने आस पास के वातावरण को भी साफ़ रखना उनकी ज़िम्मेदारी है।
4. मॉरल वैल्यू का ज्ञान (Parenting)
शिक्षा कोई भी हो उसे ग्रहण करना आवश्यक है। दुर्भाग्यवश आज हम देखते हैं कि पेरेंट्स अपने बच्चों को अंग्रेज़ी की शिक्षा तो दिलवा देते हैं लेकिन उन्हें मॉरल वैल्यू तथा अपने ख़ुद के कल्चर के विषय के बारे में कोई पाठ नहीं पढ़ाते हैं।
यहाँ पर पैरेंट्स को ध्यान देना चाहिए कि मॉरल वैल्यू का ज्ञान देना पेरेंटिंग (Parenting) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए मॉरल वैल्यू का पाठ पढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। बच्चों को हेल्दी हैबिट्स के बारे में बताएँ। उन्हें बताएँ कि बड़ों का आदर करना, सम्मान करना, प्यार से बात करना, ज़िद न करना एक अच्छे इंसान की पहचान है। बच्चों को इतिहास के गरिमामय तथा महत्वपूर्ण आदर्श व्यक्तित्व के बारे में भी बताएँ।
Conclusion
साइकोलॉजी में एक महत्वपूर्ण थ्योरी है जिसे टेबुलारासा के नाम से जानते हैं। इस थ्योरी के अनुसार मनुष्य का जन्म ख़ाली दिमाग़ अर्थात ब्लैंक शीट के साथ होता है। वह जो चीज़ें अपने जीवन में देखता है उसे ही अपने व्यवहार और चरित्र में शामिल करता है। इस थ्योरी को बताने का हमारा मक़सद ये हैं कि जब बच्चा पैदा होता है तो वह कैसा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे की पेरेंटिंग (Parenting) किस प्रकार की जा रही है। पेरेंटिंग (Parenting) ना सिर्फ़ एक ज़िम्मेदारी है बल्कि एक कला भी है जो बच्चों के भविष्य निर्धारण का काम करती है।