मध्य भारत का एक ऐसा पर्यटन स्थल जो इतिहास, अध्यात्म और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है। जहाँ श्री राम को भी पूजा जाता है और श्री कृष्ण को भी। महल रूद्र प्रताप सिंह का भी है और जहांगीर का भी। लेकिन यहां के राजा कोई और नहीं खुद राजाराम है।
भारत का एकमात्र ऐसा नगर जहाँ राम को राजा के रूप में माना जाता है। लोगों की मान्यता है, कि पहले राजा हुये मधुकर और उनकी पत्नी कुंवर गणेशी श्री कृष्ण को पूजते थे और गणेशी बाई श्री राम को। जहाँ पर उनका भोजनालय था वहाँ पर राम बिराजमान थे। तो जब वह 1 दिन वे खाना खा रहे थे तो राजा ने बोला कि कृष्ण जन्माष्टमी आ रही है तुम मेरे साथ गोकुल चलो मैं तुम्हें कृष्ण के साक्षात दर्शन कराऊंगा। तो उनकी पत्नी ने बोला कि नहीं हम अयोध्या जाएंगे।
मान्यता
ऐसी मान्यता है, कि वे अयोध्या गई और वहाँ पर सरयू नदी के तट के पास एक साल सीताराम का जाप किया और भगवान श्रीराम उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले मांगों क्या वर चाहिए? आपको हम आपकी तपस्या से प्रसन्न हुए। उन्होंने बोला ओरछा चलो। रानी के सामने श्री राम ने 3 शर्त रखी पहली वहाँ पर पुख नक्षत्र को बहुत माना जाता है तो
- जहां पर नक्षत्र शुरू होगा वह साथ जाएंगे और जहां पर भी पुख नक्षत्र खत्म हो जाएगा वहां से वापस आ जाएंगे।
- दूसरी शर्त यह थी कि जहां से उन्हें ले जा रही हैं वहां राजा राम का ही राज होगा और उनकी ही बातें मानी जाएंगी।
- तीसरी शर्त श्रीराम की यह थी कि जहाँ उन्हें पहली बार विराजमान कर देंगे वही उनका निवास होगा फिर वहां से कहीं उठकर नहीं जाएंगे।
मध्यप्रदेश शासन दिन में 4 बार राजाराम को गार्ड ऑफ ऑनर की उपाधि देता है। ओरछा महल और राजा महल 1501 में पहले रूद्र प्रताप ने उसे बनाना शुरू करवाया उसके बाद राजा मधुकर ने 1551 में उसकी देखरेख की। जहांगीर 1 दिन के लिए रुके थे राजा महल में आए थे। ये महल में मुगल नकाशी अद्भुत है। इस महल में 136 कमरे हैं 100 कमरे तो यहां के तल घर में है।
लक्षमीनारायण मन्दिर

Laxminarayan Temple
राजा महल के सामने ही चतुर्भुज मंदिर है क्योंकि राजा कृष्ण के उपासक थे इसलिए वे चाहते थे कि जब वे उठे तो उन्हें कृष्ण के दर्शन हो सबसे पहले। चतुर्भुज का अर्थ है चार भुजा वाले। राम और कृष्ण दोनों की चार भुजाएं विष्णु का ही रूप है।
मन्दिर की प्रसिद्धि

The Story Behind Laxminarayan Temple
लक्ष्मी नारायण मंदिर वास्तुकला और कलाकृति के लिए प्रसिद्ध है। यहां आकर पर्यटकों को बहुत ही शांति का अनुभव होता है। यह मंदिर बाहर से त्रिकोण आकार का दिखता है और अंदर जाकर चोकोर दिखाई देता है। यहां पर बने हुई कलाकृति बहुत ही अद्भुत है। यहां पर 400 साल पुराने कुछ चित्रकला मिलती हैं और कुछ 100 साल पुरानी। जिसमें रामलीला और कृष्ण लीला 400 साल पुरानी है और 100 साल पुरानी कला में 1857 की क्रांति को दर्शाया गया है। लक्ष्मी नारायण मंदिर ओरछा के सबसे ऊंचे स्थान पर इसीलिए बनाया गया जिससे माँ लक्ष्मी की कृपा पूरे ओरछा पर बनी रहे।
बेतवा नदी के किनारे बसा है ओरछा जहाँ राजामहल भी है और जहांगीर महल भी। बेतवा नदी के किनारे जहा कृष्णा और लक्ष्मी नारायण ओरछा की रक्षा करते हैं। ओरछा जाकर इतिहास अध्यात्म का गहरा अनुभव करना है तो पर्यटकों को एक बार यहाँ जरूर आना चाहिए।