Sunday, December 22, 2024
hi Hindi
Neem Karoli Baba

प्रेमावतार नीम करौरी बाबा

by SamacharHub
477 views

बात बहुत पुरानी है। अपनी मस्ती में एक युवा योगी लक्ष्मण दास हाथ में चिमटा और कमण्डल लिये फरुर्खाबाद (उ.प्र.) से टूण्डला जा रही रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में चढ़ गया। गाड़ी कुछ दूर ही चली थी कि एक एंग्लो इण्डियन टिकट निरीक्षक वहाँ आया। उसने बहुत कम कपड़े पहने, अस्त-व्यस्त बाल वाले बिना टिकट योगी को देखा, तो क्रोधित होकर अण्ट-सण्ट बकने लगा। योगी अपनी मस्ती में चूर था। अतः वह चुप रहा।

कुछ देर बाद गाड़ी नीब करौरी नामक छोटे स्टेशन पर रुकी। टिकट निरीक्षक ने उसे अपमानित करते हुए उतार दिया। योगी ने वहीं अपना चिमटा गाड़ दिया और शान्त भाव से बैठ गया। गार्ड ने झण्डी हिलाई; पर गाड़ी बढ़ी ही नहीं। पूरी भाप देने पर पहिये अपने स्थान पर ही घूम गये। इंजन की जाँच की गयी, तो वह एकदम ठीक था। अब तो चालक, गार्ड और टिकट निरीक्षक के माथे पर पसीना आ गया। कुछ यात्रियों ने टिकट निरीक्षक से कहा कि बाबा को चढ़ा लो, तब शायद गाड़ी चल पड़े।

मरता क्या न करता, उसने बाबा से क्षमा माँगी और गाड़ी में बैठने का अनुरोध किया। बाबा बोले – चलो तुम कहते हो, तो बैठ जाते हैं। उनके बैठते ही गाड़ी चल दी। इस घटना से वह योगी और नीबकरौरी गाँव प्रसिद्ध हो गया। बाबा आगे चलकर कई साल तक उस गाँव में रहे और नीम करौरी बाबा या बाबा नीम करौली के नाम से विख्यात हुए। वैसे उनका मूल नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था तथा उनका जन्म अकबरपुर (उ.प्र.) में हुआ था। बाबा ने अपना मुख्य आश्रम नैनीताल (उत्तरांचल) की सुरम्य घाटी में कैंची ग्राम में बनाया। यहाँ बनी रामकुटी में वे प्रायः एक काला कम्बल ओढ़े भक्तों से मिलते थे।

बाबा ने देश भर में 12 प्रमुख मन्दिर बनवाये। उनके देहान्त के बाद भी भक्तों ने 9 मन्दिर बनवाये हैं। इनमें मुख्यतः हनुमान् जी की प्रतिमा है। बाबा चमत्कारी पुरुष थे। अचानक गायब या प्रकट होना, भक्तों की कठिनाई को भाँप कर उसे समय से पहले ही ठीक कर देना, इच्छानुसार शरीर को मोटा या पतला करना..आदि कई चमत्कारों की चर्चा उनके भक्त करते हैं। बाबा का प्रभाव इतना था कि जब वे कहीं मन्दिर स्थापना या भण्डारे आदि का आयोजन करते थे, तो न जाने कहाँ से दान और सहयोग देने वाले उमड़ पड़ते थे और वह कार्य भली भाँति सम्पन्न हो जाता था।

जब बाबा को लगा कि उन्हें शरीर छोड़ देना चाहिए, तो उन्होंने भक्तों को इसका संकेत कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपने समाधि स्थल का भी चयन कर लिया था। 9 सितम्बर, 1973 को वे आगरा के लिए चले। वे एक कापी पर हर दिन रामनाम लिखते थे। जाते समय उन्होंने वह कापी आश्रम की प्रमुख श्रीमाँ को सौंप दी और कहा कि अब तुम ही इसमें लिखना। उन्होंने अपना थर्मस भी रेल से बाहर फेंक दिया। गंगाजली यह कह कर रिक्शा वाले को दे दी कि किसी वस्तु से मोह नहीं करना चाहिए।

आगरा से बाबा मथुरा की गाड़ी में बैठे। मथुरा उतरते ही वे अचेत हो गये। लोगों ने शीघ्रता से उन्हें रामकृष्ण मिशन अस्पताल, वृन्दावन में पहुँचाया, जहाँ 10 सितम्बर, 1973 (अनन्त चतुर्दशी) की रात्रि में उन्होंने देह त्याग दी।

बाबा की समाधि वृन्दावन में तो है ही; पर कैंची, नीब करौरी, वीरापुरम (चेन्नई) और लखनऊ में भी उनके अस्थि कलशों को भू समाधि दी गयी। उनके लाखों देशी एवं विदेशी भक्त हर दिन इन मन्दिरों एवं समाधि स्थलों पर जाकर बाबा का अदृश्य आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।
…………………………..

(10 सितम्बर/पुण्य-तिथि)

 

अध्यात्म पुरुष बाबा बुड्ढा

SAMACHARHUB RECOMMENDS

Leave a Comment