मनुष्य की प्राचीन जीवन शैली के मुकाबले आधुनिक जीवन शैली अत्यधिक सरल और आसान हो गई है, वर्तमान समय में मनुष्य काम स्वयं ना करके दूसरों के द्वारा करवाता है जैसे- गैजेट्स, इस कारण से लोगों में आलसपन व बहुत से प्रकार की बीमारियों को बढ़ावा मिला है।
मनुष्य को बर्बाद करने के छह कारण है आलस, थकान, डर, गुस्सा, निंद्रा, व काम डालने की आदत। अतः इस आधुनिक युग में मनुष्य द्वारा इन्हीं को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। मनुष्य को इससे बचना चाहिए। दिनचर्या में सुधार करना चाहिए व नियमित रूप से, पारिवारिक दृष्टि से शरीर के अनुसार कार्य करना चाहिए। इससे हमारे जीवन शैली में काफी सुधार देखा जा सकता है। आज हम जानेंगे कि मनुष्य की बेहतर जीवन शैली कैसे बनाई जाए।
कहां केंद्रित है आधुनिक जीवनशैली
मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधा के लिए बड़े बड़े भवनों का निर्माण किया है परंतु उसमें रहने के लिए परिवार छोटा है। फिजूलखर्ची अधिक है, सुख शांति कम है। मनुष्य जीवन में जो नहीं होना चाहिए वह सबसे अधिक है परंतु जो होना चाहिए वह सबसे कम है जैसे सुख- शांति। आधुनिक जीवन शैली में मनुष्य का अधिकतम समय या तो आलस पन में निकल जाता है, या दूसरों को नीचा दिखाने में। इस कारण से मनुष्य अपनी स्वयं की परिस्थितियों पर विशेष ध्यान नहीं दे पाता है। हम बात करते हैं आधुनिक जीवन शैली में खान पान के बारे में मनुष्य घर में बना हुआ खाने के मुकाबले होटलों में बना मिलावटी, गंदे तरीके से खाना पसंद करता है। प्राकृतिक फल- फूल की जगह वह फास्ट फूड खाना पसंद करते हैं।
क्या बदलाव आया है?
इस कारण से विभिन्न प्रकार की बीमारियां जैसे मोटापा, कैंसर इत्यादि घातक बीमारियों ने अपनी जगह बना ली है। यह बात तो हो गई मनुष्य के खाने से संबंधित अब हम बात करते हैं। मनुष्य के आलस पन की मनुष्य छोटे छोटे काम के लिए वाहनों का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करता। इस कारण से वायु की गुणवत्ता बिगड़ गई है, जिससे कि मनुष्य को सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही है। इससे कई प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो रही है जैसे अस्थमा। लोग लालची अधिक हो गए हैं क्योंकि अधिक लाभ कमाने के चक्कर में खानपान की वस्तुओं में जहरीले केमिकल्स की मिलावट करते हैं।
आजकल के लोग अपने परिवार के साथ ना रहकर अलग अलग रहना पसंद करते हैं, जिससे उनकी खुशियों में काफी कमी आई है वह दुखों में वृद्धि हुई है। यह कहना उचित होगा कि इस जीवनशैली में मनुष्य अपने आप को खतरे में खुद स्वयं डाल रहा है। वह स्वयं की मृत्यु स्वयं ही तय कर रहा है क्योंकि मनुष्य ने अपने आपको बहुत ही आलस व लालची बना लिया है। मनुष्य ने प्रकृति से काफी दूरी बना ली है। वह आर्टिफीसियल चीजों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।