यह आप जानकर चौक जायेंगे की इतिहास के निर्माण में गैर मानवीय शक्तियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
अमेरिका में खेतों के मालिक नई दुनिया के नाम से मशहूर मूल अमेरिकियों की वजह अफ्रीकी गुलाम में क्यों ज्यादा रुचि रखते थे? अफ्रीकी देश सेनेगल के गोरी आईलैंड स्थित गुलामों के संग्रहालय के प्रभारी एलोय कोली का कहना है, कि इसका एक मूल कारण मलेरिया है।
बाहर से आकर बसे लोग और गुलामों के रक्त में परजीवियों के कारण से अमेरिका महाद्वीप में मलेरिया ने चुनौती दी थी। उन्हें स्थानीय एनाफिलीज मच्छर ने हर जगह फैलाया था। इसके चलते बहुत ही कम समय में बड़ी मात्रा में मूल अमेरिकी और यूरोपीय लोगों की मलेरिया के कारण से मृत्यु होने लगी थी। लेकिन चौका देने वाली बात यह है, कि इन्हीं मच्छरों के बीच रहने वाले लोग अफ्रीकी गुलाम इस बीमारी के दुष्प्रभाव से सुरक्षित रहे थे।
लेखिका सोनिया शाह अपनी किताब द फीवर में लिखती हैं, कि वेस्टइंडीज के भू-स्वामी किसी भी यूरोपियन की तुलना में अफ्रीकी गुलाम के लिए तीन गुना ज्यादा पैसा देते थे। लेखिका तिमोथी विनेगार्ड अपनी किताब द मोसक्विटो में बताती हैं, कि अन्य बीमारियां भी फैलाने वाले मच्छरों ने किसी अन्य जानवरों की तुलना में हमारे मानव इतिहास को आकार देने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
अफ्रीका में मलेरिया से होने वाली बीमारी बेहद खतरनाक थी। अफ्रीका में आने वाले यूरोपीय प्रवासी मलेरिया के कारण मर जाते थे। इसलिए प्रवासी ऐसे स्थान पर निवास करते थे जहां पर मच्छर बहुत ही कम मात्रा में हो। इन स्थानों में दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे, उत्तर अफ्रीका, केन्या, भूमध्य सागर तटीय क्षेत्र सम्मिलित थे और दूसरी तरफ पश्चिम अफ्रीका में अगर कोई प्रवासी बसता था तो उसके मरने की 50 प्रतिशत संभावना अधिक थी।
मलेरिया ने अन्य महाद्वीपों को भी आकार दिया
मलेरिया ने रोमन साम्राज्य की रक्षा की है। एक समय था जब यूरोप में बहुत अधिक मलेरिया फैला हुआ था। रोमन साम्राज्य पर विजय का प्रतीक लहराना मुश्किल था क्योंकि इसके आसपास काफी दलदली इलाका था। रोमन लोगों का सोचना था कि वहां पर जहरीले धुएं के कारण लोग बुखार के शिकार हो जाते हैं। इसलिए वहां पर इस जहरीली हवा से मलेरिया शब्द बना। ईशा पूर्व 218 में हनीबल ने रोमन साम्राज्य पर हमला कर अपने काबू में करना चाहता था। लेकिन मलेरिया के कारण उसकी बेटी, पत्नी और उसके अधिकतर सैनिकों की मृत्यु हो गई जिसके फलस्वरूप उसको वहां से भागना पड़ा। अर्थात कह सकते हैं कि मलेरिया ने रोमन साम्राज्य की सहायता की थी।
मलेरिया ने सैनिकों का समर्पण कराया
सिंचोना की छाल (औषधीय पेड़) से मलेरिया की दवाई बनाई जाती थी लेकिन इसकी कमी के चलते डच सरकार ने इंडोनेशिया में इस पेड़ को बड़ी मात्रा में रोपित किया। सन् 1900 तक डच पांच हजार टन कुनैन का उत्पादन करने लगा था। द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तब जर्मनों ने नीदरलैंड्स पर हमला कर कुनैन के विशाल भंडार पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद जापानियों ने इंडोनेशिया पर आक्रमण कर सिंचोना पेड़ के बगीचों पर कब्जा कर लिया था। इस तरीके से दुनिया की 95 परसेंट कुनैन बड़े देशों के पास चली गई। मित्र देशों के पास मलेरिया से बचाव के साधन बहुत कम थे। बाटान द्वीप में फिलीपीनी और अमेरिकी सैनिकों ने मलेरिया से पीड़ित होने के कारण जापानियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।