भारत के उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में भगवान शिव का लिंगराज मंदिर स्थित है। यह भारत के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है 1400 वर्ष से भी अधिक पुराना इस मंदिर का इतिहास है।
मंदिर का निर्माण कार्य
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1090 से 1104 में बना था। छठवीं शताब्दी का यह प्रमुख मंदिर है। यह भगवान त्रिभुवन ेश्वर का मंदिर है। वास्तु कला का अद्भुत उदाहरण है। इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजति केशरि ने 11 वीं शताब्दी में करवाया था। इस मंदिर का प्रागन्ण 150 मीटर वर्गाकार है। इसके कलर्स की ऊंचाई 40 मीटर है। इस मंदिर के रथ यात्रा हर साल अप्रैल महीने में आयोजित की जाती है। मंदिर के पास में ही बिंदुसागर सरोवर और भारत के झरनों का जल इसमें संग्रहित होता है। इस तालाब में स्नान करने से पाप मोचन होता है।
लिंगराज मंदिर का वास्तुशिल्प दर्शन
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Lingaraj Temple boundary and surrounding
लिंगराज का विशाल मंदिर स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है इस मंदिर की कारीगिरी और मूर्तिकला चमत्कारी है इस मंदिर का शिखर भारतीय मंदिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारंभिक अवस्था का शिखर कहा जाता है यह नीचे से तो सीधा और समकोण है, ऊपर पहुंचकर वक्र हो जाता है। शीर्ष पर वर्तुल दिखाई देता है। इस मंदिर की सुंदर नक्काशी देखते ही बनते हैं। मंदिर के हर एक पत्थर पर अलंकरण उत्कीर्ण है। मंदिर में जगह-जगह मानव आकृति और पशु पक्षियों के सुंदर मूर्ति चित्र बने हुए हैं। मंदिर के चारों ओर स्थूल व लम्बी पुष्प मालाएं फूलों के मोटे गजरे पहने हुए दिखाई देती हैं। मंदिर के शिखर की ऊंचाई 180 फुट है। इस मंदिर में तीन और छोटे मंदिर स्थित है, भगवान गणेश, स्वामी कार्तिकेय और माता गौरी के तीन छोटे मंदिर में मुख्य मंदिर के विमान में संलग्न है। गौरी मंदिर में पार्वती जी की काले पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चतुर्दिक गज सिंहो की उकेरी हुई मूर्तियां दिखाई देती है।
धार्मिक मान्यता
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Display of the incredible art at Lingaraj Temple
इस मंदिर से धार्मिक मान्यता जुड़ी हुई है। माता पार्वती ने लिट्टी और बसा नाम के दो राक्षसों का बस यहीं पर किया था। संग्राम करने के बाद उन्हें प्यास लगी तो भगवान शिव जी ने सभी पवित्र नदियों को योगदान देने के लिए बुलाया और एक कूप का निर्माण किया। बिंदु सागर सरोवर के पास ही लिंगराज का विशालकाय मंदिर स्थित है यह मंदिर भारत के शिव संप्रदाय का आस्था का केंद्र बिंदु है। शिव परिवार का अद्भुत और वास्तु कला से संपन्न मंदिर अतुलनीय है।
पूजन की विधि
इस मंदिर में पूजन करने के पहले बिंदु सरोवर में इस्लाम करना पड़ता है, उसके बाद अनंत वासुदेव के दर्शन करते हैं। भगवान श्री गणेश की पूजन के बाद, गोपालनी देवी और फिर भगवान शिव जी के वाहन नंदी के पूजा करने के बाद, लिंगराज के दर्शन के मुख्य स्थल पर प्रदेश किया जाता है। इस मंदिर में 8 फीट मोटा और करीब 1 फीट ऊंचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है। गर्भ ग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोग मंडप में सुंदर सिंह मूर्तियों के साथ देवी देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएं बनी हुई है। यह उड़ीसा के भुवनेश्वर का वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना है।