जिंदगी और मौत इक सफर के दो छोर
जिंदगी चलती रहती अनवरत मौत की ओर
कौन सा रस्ता, कौन सी मंजिल
ढूंढते रहते हैं हम जिंदगी भर
जीवन भी उसका मौत भी उसकी
हम तो हैं साधन भर
खिले हुए फूल भी मुरझाते हैं
लेकिन उपवन कब शोक मनाते हैं
नदिया का निर्मल जल बहे सतत सागर की ओर
उद्गम कब धारा को रोक पाते हैं
“अकेला” ये कहता है तू क्यूँ किसी के जाने का अफसोस जताता है, जीवन का तो यही फ़साना है उसने तो मौत को पाना है
जिंदगी और मौत इक सफर के दो छोर
जिंदगी चलती रहती अनवरत मौत की ओर
रचयिता संदेश कुमार गुप्ता