29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई। भारत की 1986 की शिक्षा प्रणाली में बदलाव हुआ है। भारतीय संविधान में 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था का प्रावधान है। 1948 में डॉक्टर राधाकृष्णन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का गठन हुआ। 1968 में पहली बार इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बदलाव का प्रस्ताव पारित हुआ। शिक्षा के क्षेत्र में चुनौतीपूर्ण कदम उठाए गए हैं। 1985 में शिक्षा की चुनौती में शिक्षा के संबंध में राजनैतिक, सामाजिक, प्रशासनिक और कई टिप्पणियां प्रस्तुत की गई। 1986 में नई शिक्षा नीति के ढांचे को प्रस्तुत किया गया। इस शिक्षा नीति के तहत राज्यों में 10+2+3 की संरचना को प्रस्तुत किया गया। समय-समय पर शिक्षा के बदलाव को स्वीकार आ गया। 1992 में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव हुए।
नई शिक्षा नीति की शुरुआत
भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के आम चुनाव में एक नवीन शिक्षा नीति बनाने का मुद्दा शामिल किया था। नई शिक्षा नीति के लिए जनता से सुझाव 2019 से ही मांगे जा रहे थे। आज 29 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति की घोषणा हो गई है।
नई शिक्षा नीति में परिवर्तन
शिक्षा मंत्रालय
मानव संसाधन मंत्रालय को बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। नई शिक्षा नीति यह फैसला लिया गया कि पहले की तरह ही शिक्षा मंत्रालय होना चाहिए। उच्च शिक्षा के लिए भी एकल निकाय भारत उच्च शिक्षा आयोग ही रहेगा। कानूनी और चिकित्सीय शिक्षा को छोड़कर बाकी उच्च शिक्षा भारत उच्च शिक्षा आयोग ही देखेगा। संगीत, खेल, योग आदि को सहायक पाठ्यक्रम की जगह मुख्य पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा। सकल घरेलू उत्पाद का कुल 6% शिक्षा पर खर्च किया जाएगा। पहले 4.43% ही शिक्षा के क्षेत्र में खर्च होता था।
उच्च शिक्षा में महत्वपूर्ण कदम
अब अनुसंधान करने के लिए 3 साल के स्नातक डिग्री के बाद 1 साल स्नातकोत्तर करके पीएचडी की जा सकती है। अभी एमफिल के बिना पीएचडी नहीं होती थी। विश्वविद्यालयों में कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षकों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया जाएगा।
इंजीनियरिंग के छात्र अपने विषय के साथ संगीत को भी पढ़ सकते हैं। उच्च शिक्षा में विशेष बदलाव किया गया है। विद्यार्थी किसी कारण बस अपनी डिग्री पूरी नहीं कर पाता, तो उसे डिग्री पूरी करने के लिए नई शुरुआत नहीं करनी पड़ेगी। पहले वर्ष में कोर्स छोड़ने पर प्रमाण पत्र, दूसरे वर्ष में छोड़ने पर डिप्लोमा और अंतिम वर्ष में डिग्री का प्रावधान रखा गया है। यह कदम छात्रों के लिए सराहनीय होगा।
स्कूल शिक्षा में उचित कदम
- स्कूलों में 10 +2 फॉर्मेट की जगह 5+3+3+4 फॉर्मेट को जगह दी गई है।
- 5 साल में प्री प्राइमरी स्कूल के 3 साल और कक्षा 1 और कक्षा 2 के फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे।
- कक्षा 3 से 5 के 3 साल प्री प्राइमरी कक्षा होगी।
- कक्षा 6 से 8 तक मिडिल स्टेट शिक्षा शामिल होगी।
- चौथा स्टेज कक्षा 9 से 12 तक का 4 साल का होगा। अब कक्षा 9वी से ही विषय चुनने की आजादी दी जाएगी। अभी 11वीं में जाकर विषय चुनते थे।
- कक्षा पहली से लेकर पांचवी तक के बच्चों को मातृभाषा का ज्ञान दिया जाएगा। छात्र शुरू से ही अपने नींबू को मजबूत कर सकेंगे।
नई शिक्षा नीति से लाभ
नई शिक्षा नीति आने से नए भारत की जरूरत को पूरा किया जाएगा। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा मिल सके। बच्चे अपनी मातृभाषा को अच्छी तरह पहचान पाए।