भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य में पवित्र शहर मथुरा स्थित है।
मथुरा शहर ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। मथुरा शहर का पर्यटन के क्षेत्र में विशेष महत्व है।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र मथुरा है। मथुरा भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि है। धर्म-दर्शन कला और साहित्य के क्षेत्र में मथुरा का वर्चस्व रहा है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष पर्व मथुरा में मनाया जाता है। वृंदावन बरसाने की गलियों में दूध, दही की नदियां बहती हैं। हिंदुओं के लिए कृष्ण जन्माष्टमी विशेष पर्व है। मथुरा के बड़े और सुंदर मंदिर देखते ही बनते हैं। भगवान कृष्ण की जन्मभूमि से सभी को विशेष लगाव है।
मथुरा का इतिहास
प्राचीन काल में मथुरा को कई नामों से जानते थे। शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मथुरा, मधु नगरी आदि नामों से विख्यात है। भारत का हिमालय और विंध्याचल के बीच का आर्यवर्त मथुरा कहलाता है। यह यमुना नदी के किनारे बसा हुआ शहर है। रामायण काल में भी मथुरा का वर्णन बाल्मीकि रामायण में किया गया है। लवणासुर की राजधानी मथुरा को शत्रुघ्न ने युद्ध में जीत कर यहां राज्य किया था।
मथुरा में चार शिव मंदिर हैं। पूर्व में पिपलेश्वर का, दक्षिण में रंगेश्वर का, उत्तर में गोकर्णेश्वर का और पश्चिम में भूतेश्वर महादेव मंदिर हैं। श्री कृष्ण के प्रपोत्र वज्रनाभ ने भी केशव देव जी की मूर्ति स्थापित की थी। औरंगजेब के समय में औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद खड़ी कर दी। मस्जिद के पीछे अब नया केशव देव का मंदिर बन गया है। खुदाई में कई ऐतिहासिक वस्तु है प्राप्त हुए हैं।
कृष्ण जन्मभूमि
भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव की आधारशिला सात महापुरिया है। गरुण पुराण में अयोध्या के बाद मथुरा का स्थान आया है। कई पुराना में मथुरा को सर्वोपरि माना है। मथुरा को कृष्णा पुरी, ब्रजेश्वरी तीर्थ, तपेश्वरी, तपो निधि और मोक्ष प्रदायनी में धर्मपुरी मथुरा कहा है। मथुरा में पोतरा कुंड के पास भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि है जिसमे वसुदेव और देवकी की मूर्तियां है, इस स्थान को मल्लपुरा कहा जाता है। भगवान ने कंस वध के पश्चात मथुरा में रहे थे।
मथुरा का संगीत
मथुरा में संगीत का प्राचीन काल से वर्चस्व रहा है। बांसुरी ब्रज का प्रमुख वाद्य यंत्र है। भगवान श्री कृष्ण को मुरलीधर, बंशीधर के नाम से सभी जानते हैं। 16 वीं शताब्दी में मथुरा में राशि के वर्तमान स्वरूप का आरंभ हुआ। लोक संगीत के प्रसिद्ध वाद्य यंत्र ढोल, मृदंग, झांझ, मंजीरा, नगाड़ा, पखावज, एक तारा का नाम आता है। प्रेस का साहित्य सांस्कृतिक और कलात्मक जीवन को प्रेरणा देता है। सूरदास, नंद दास, कृष्णदास यहां गायक रहे हैं। सम्राट अकबर तानसेन का संगीत सुनने के लिए भेष बदल का मथुरा आते थे।
मथुरा में कई दर्शनीय स्थल हैं। ट्रेन या सड़क मार्ग द्वारा मथुरा पहुंचा जा सकता है। वृंदावन काफी सुहावना और पावन स्थान है। जन्माष्टमी का त्यौहार मथुरा में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। दूध, दही, मिश्री और मक्खन का विशेष महत्व होता है। भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को बड़े उत्सव के साथ मनाते हैं। मथुरा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है।
होली उत्सव
होली रंगों और खुशी का त्यौहार है भारत का प्रमुख त्यौहार में से के होली है। मथुरा तो होली के लिए जानी जाती है। बरसाने और वृंदावन में फूलों की होली खेली जाती है। होली का विशेष उत्सव यहां पर मनाया जाता है।
मथुरा से वृंदावन तक दर्शनीय स्थल
बांके बिहारी मंदिर
बांके बिहारी मंदिर भारत के मथुरा के वृंदावन धाम में स्थित है। यह प्राचीन श्री कृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर है उसका निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास ने करवाया था। श्री धाम वृंदावन श्री कृष्ण की पावन नगरी है। इस पवित्र भूमि पर भगवान कृष्ण ने अपना समय व्यतीत किया था। वृंदावन के कण-कण में श्री कृष्ण अपनी लीलाओं के साथ बसे हुए।
अन्य दर्शनीय स्थल
बिड़ला मंदिर, राधाबल्लभ मंदिर, प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, दाऊजी मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि