डायना बेरेन्ट न्यूयॉर्क के पोर्ट वॉशिंगटन की फोटोग्राफर हैं। बरेन्ट का कहना है कि प्लाज्मा थेरेपी लोगों को बचाने का प्रकृतिक सुपर पावर है। हम मरने वालों के हाथ पकड़ सकते हैं हम प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं। जीवन बचाने के लिए आपके शरीर के लिए बनाई गई। प्राकृतिक सुपर पावर से बढ़कर कुछ नहीं है क्योंकि इस महामारी के लिए इससे बेहतर थैरपी नहीं है।प्लाजमा थेरेपी एक प्राकृतिक सुपर पावर है जो जीवन बचाने के लिए बनाई जाती है। ऐसी कई गंभीर बीमारियां हैं जिनका इलाज संभव नहीं है। प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से यह संभव होने के आशा जागी है। जब लोग जीने की इच्छा शक्ति खो देते हैं और मौत के करीब पहुंच जाते हैं। जहां जीवन की संभावना खत्म होती दिखती है। ऐसे समय में प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग कारगर साबित होता है। जो व्यक्ति उस बीमारी से पीड़ित था और स्वस्थ हो गया हो, तो उसके शरीर का रक्त दूसरे उसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को जीवनदान देता है। प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग SARS में किया गया था। आज दुनिया कोरोनावायरस के संक्रमण से जूझ रही है ऐसे में प्लाज्मा थेरेपी उम्मीद की किरण है। कोरोना की वैक्सीन इतनी जल्दी आना संभव नहीं है।
दुनिया के सारे देश अमेरिका, स्पेन, दक्षिण कोरिया, इटली, टर्की और चीन समेत कई देश प्लाज्मा थेरेपी से कोरोनावायरस के इलाज को कर रहे हैं। प्लाज्मा थेरेपी के सकारात्मक रिजल्ट सामने आ रहे हैं। चीन में जब यह मामला सामने आया तो कोरोनावायरस के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया था।
प्लाजमा थेरेपी का पहले उपयोग
2002 का सोर्स
प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल 2002 में सोर्स नामक वायरस ने कई देशों में तबाही मचा दी थी। उस समय प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग कई गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए किया गया था।
2009 h1 n1 इंफेक्शन
वर्ष 2009 में h1 n1 खतरनाक इंजेक्शन फैला हुआ था जिसे रोकने के लिए प्लाजमा थेरेपी का सवाल किया गया इससे बेहतर कामयाबी मिली।
2014 का इबोला वायरस
प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल 2014 में गोला जैसे खतरनाक वायरस को रोकने के लिए किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने इसे रोकने के लिए प्लाज्मा थेरेपी की अनुमति प्रदान की।
2015 में मर्स के इलाज में
2015 में मर्स का इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया। जब भी दुनिया में इलाज की कोई संभावना ना बची हो तो प्लाजमा थेरेपी नेचुरल सुपर पावर बनकर सामने आई।
प्लाज्मा दान करके लोग सुपर हीरो के साथ साथ जिंदगी बचाने का काम भी करेंगे। शरीर में जितना संभव हो उतना रक्त निकाला जा सकता है। एक व्यक्ति कई बार प्लाज्मा दान कर सकता है। एक बार ठीक होने के बाद डरने की आवश्यकता नहीं होती है। वह बीमारी शरीर से चली जाती है। भारत में भी इस थेरेपी से लोगों की जान बचाई जा रही हैं।
जो लोग स्वस्थ होकर अपना प्लाज्मा देने के लिए आगे आ रहे हैं, वह धन्यवाद के पात्र हैं। हर देश चाहता है कि पहले वैक्सीन हम बनाएं। इबोला का टीका सबसे पहले कनाडा में बना। उस पर अमेरिका में रिसर्च के लिए भेजा गया। जर्मनी ने इसका निर्माण किया इस प्रकार इबोला खतरनाक बीमारी से निजात मिली। अभी तो प्लाजमा थेरेपी ही एकमात्र उपाय है जिससे लोगों की जान बचाने का तरीका नजर आ रहा है।