Sunday, November 24, 2024
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COVID-19 ले रहा अब भावनाओं की परीक्षा!

COVID-19 ले रहा अब भावनाओं की परीक्षा!

by Nayla Hashmi
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एक अहम सवाल है; क्या बीमार या मृत्यु को प्राप्त सगे-सम्बन्धियों के प्रति चिंता अनुचित है?

आजकल (COVID-19 के दौरान) मीडिया में जो बीमार हैं या गुजर गए हैं उनके परिवारवालों के प्रति संवेदना या चिंता किस प्रकार से प्रदर्शित करें, क्या बोलें और क्या ना बोलें हेतु बहुत से लेख प्रकाशित हो रहे हैं। ये सही है कि संवेदनाओं से भरा, स्पष्ट सम्प्रेषण किसी भी बात को कहने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और किसी का मन भी दुःखी  नहीं करता परन्तु ये भी सही है कि समझने और सीखने का प्रयास करने पर भी सम्प्रेषण में सब अव्वल नहीं हो सकते। 

कोविड-19 (COVID-19) महामारी की वजह से बहुत से लोगों की आकस्मिक और असामयिक मृत्यु हो गयी है। सबसे बड़ा आघात परिवार को लगता है। अचानक से किसी प्रिय से बिछुड़ जाना परिवारीजन को बहुत बड़ा मानसिक आघात देता है और बहुत बार ये मानसिक स्थिति शारीरिक स्थिति को भी प्रभावित कर देती है। 

क्या कोरोना वायरस (COVID-19) लोगों में निराशा भरने की ज़िम्मेदार है?

Coronavirus Pandemic and people’ health

एक बात जो ध्यान देने योग्य है कि जो व्यक्ति बीमार है या जिसकी मृत्यु हो गयी है, वह सिर्फ अपने परिवार – एकल परिवार का ही हिस्सा नहीं है/था, वह एक एक्सटेंडेड  परिवार का हिस्सा है/ था और उसकी बहुत से लोगों से घनिष्टता है या रही है, जो उसके रिश्तेदार हो सकते हैं, कार्यस्थल के सह-कर्मी हो सकते है, मित्र हो सकते है और कुछ लोगों के बारे परिवार अनभिज्ञ भी हो सकता हैं, परन्तु ये सब व्यक्ति भी चिंता से ग्रसित होते हैं और उनको भी कष्ट होता है।

रिश्तेदार भी जानना चाहते है कि बीमार सदस्य कैसे है, क्या स्थिति में कुछ सुधार है, और बहुतयः ये किसी वृथा गपबाजी या उत्सकता से प्रेरित नहीं होता है वरन आकुलता व अनभिज्ञता से जनित कष्ट के कारण  होता है। ऐसा संभव है कि उनका बीमार के बारे में पूछने का तरीका त्रुटिपूर्ण हो, पर इसका ये मतलब नहीं है कि उनकी भावनाएं शुद्ध नहीं है, परिवार को इसको नकारात्मकता से नहीं लेना चाहिए। 

भारतीय एक कोलैक्टिविस्ट संस्कृति को मानते है जहां व्यक्ति परिवार और समाज का अभिन्न  अंग होता है. ऐसी कलेक्टिविस्ट संस्कृति के कारण हमारे अन्तर्मन मे परस्पर निर्भरता और सह-अस्तित्व बहुत अंदर तक स्थापित होती है । बचपन से ही हमने लोगों के सुख और दुःख में सम्मिलित होना मानवता के एक महत्वपूर्ण भाग जैसे समझा है ।

किसी के विवाह में सम्म्लित होना, मृत्यु होने पर परिवार से मिल के संवेदना प्रकट करना, किसी के अस्पताल में भर्ती होने पे मिलने जाना, ये सब समाजिक जीवन के साधारण सामान्य गतिविधियां है । एक्सटेंडेड परिवार के पास और दूर के रिश्तेदार की  खैर-खबर लेना, पुराने मित्रों / पड़ोसियों की परवाह करना, हमारी सामाजिक जिम्मेदारी का ही हिस्सा समझा जाता है। संचार के माध्यमों  के कारण ये और भी आसान हो गया है।

Family breaking in covid-19 pandemic

परन्तु कोवीड 19 (COVID-19) के बचाव के नियमों के कारण ये सब मुमकिन नहीं रहा है किन्तु जो संवेदना व भावनाएं है, वो तो हैं ही, उसको नकार नहीं सकते। ये समझना जरूरी है कि वो रिश्तेदार जो अपने लोगों के बारे में जानकारी नहीं ले पा रहे है अगर वो बीमार है या जिनकी मृत्यु हो चुकी  है, वो भी  चिंता मैं है, शोक में है और अपराधबोध में भी है क्योंकि परिवारजनो के साथ नहीं खड़े हो पा रहे है, उनको कन्धा नहीं दे पा रहे और स्वयं के दुःख को भी नहीं दर्शा पा रहे हैं।  

बहुत से लोग जिन्होंने इस महामारी (COVID-19) में परिवार के सदस्य को खोया है, वे  रिश्तेदारों के फ़ोन को नहीं उठाते है या उनको बीमारी का विवरण नहीं देना चाहते, या जानकारी चाहने  वालो के इरादे को संदेह करते है, क्रोधित होते है और स्वयं भी अत्यधिक दुखी होते है।

ये सही है किए वो अपने प्रिय के बिछुड़ जाने से या उनके बीमार होने से तनाव में हैं, वे ये तय कर सकते हैं कि कितना बताना है या नहीं बताना है, ये बीमार व्यक्ति के निकट के लोगों का फैसला हो सकता है, लेकिन उनको रिश्तेदारों की भावनाओं को समझाना जरूरी है।

वे ये समझें कि सम्भवतः वो रिश्तेदार  भी  व्यथित है, चिंताग्रस्त है, और भयग्र्स्त है। ये रिश्तेदार भी अपनी चिंताओं, प्रश्नों, आशंकाओं का समापन चाहते हैं और अपनी मानसिक स्तिथि को संतुलित करने का प्रयत्न कर रहे है। इस प्रयत्न को किसी और दृष्टि से नहीं देख कर पारिवारिक और  सामाजिक सरोकार से देखेंगे तो किसी का भी मन अनावश्यक रूप से दुःखी नहीं होगा। 

कोविड 19 (COVID-19) का समय एक भिन्न समय है, इसको हमें हमारे पारिवारिक और सामाजिक ढांचे को कमजोर करने का मौका नहीं देना है, वरन इस अवधि में आवश्यक मानसिक और आध्यात्मिक सम्बल और शांति प्रदान करने में इस सरोकार की महत्ता को समझना होगा और प्रयास करके कलेक्टिविस्ट संस्कृति को और भी मजबूत बनाना होगा।

डॉ. नीतू पुरोहित, ऐसोसिएट प्रोफेसर, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी

डॉ. नीतू पुरोहित, ऐसोसिएट प्रोफेसर, आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी

 

Authored By Dr. Neetu Purohit, Professor, IIHMR University.

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