जैसे-जैसे लॉकडाउन के नियमों में ढील आती गई भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार भी देखा गया है। यदि जुलाई से सितंबर की तिमाही की बात करें तो भारत की जीडीपी विकास दर -7.5% पर है।
अप्रैल से जून की तिमाही में 16.4 प्रतिशत का सुधार देखा गया। यदि हम पहली तिमाही की बात करें तो भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट देखने को मिली थी जहां यह 23.9% तक गिर गई।
इस सुधार में प्रमुख भूमिका आठ प्रमुख क्षेत्रों में से पांच प्रमुख उद्योग क्षेत्रों की रही। रिकवरी के साथ सुधार हुआ जिनमें इन प्रमुख पांच क्षेत्रों का बड़ा योगदान रहा। मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग, सर्विस सेक्टर, कंस्ट्रक्शन और बिजली इनमें प्रमुख हैं। इसमें भी सबसे बड़ी बात यह रही कि मैंने व्यक्तियों और बिजली सेक्टर में ग्रोथ पॉजिटिव की तरफ आ गई है। जून तिमाही में नेगेटिव ग्रोथ देखी गई थी।
आगे भी तेजी की उम्मीद
वही सितंबर की तिमाही में रियल स्टेट, फाइनेंशियल और पर्सनल सर्विस के साथ ही रक्षा, लोक प्रशासन और कुछ अन्य सेवाओं में नेगेटिव ग्रोथ भी देखने को मिली। वहीं यदि हम मछली पालन, कृषि और वानिकी की बात करें तो यह विकास दर जून तिमाही के आंकड़े के बराबर यानी कि 3.4% रही। चौथी तिमाही में हो सकती है पॉजिटिव ग्रोथ
अर्थशास्त्रियों की माने तो मौजूदा वित्त वर्ष यानी कि 2020-21 की बची हुई दो तिमाही में सुधार देखने को मिलेगा। वही अक्टूबर से दिसंबर में विकास दर -3% का अनुमान है। जनवरी से मार्च में यह 0.5% तक पॉजिटिव ग्रोथ की तरफ बढ़ सकती है। वित्त वर्ष 2021-22 में संभावना है, कि इसकी शुरुआत में उपभोक्ता मांग में तेजी आएगी जिससे अर्थव्यवस्था फिर से रफ्तार पकड़ लेगी। उपभोक्ता मांग में तेजी वाहन बिक्री, गैर टिकाऊ वस्तुओं और माल ढुलाई के क्षेत्र में मांग से पता चलती है।
विशेषज्ञों की राय
आर्थिक सलाहकारों की मानें तो स्पष्ट रूप से अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी देखी गई है जिसमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में प्रमुख रूप से तेजी आई है। वही इस प्रकार की तेजी जारी रहनी चाहिए लेकिन इसका जारी रहना कोरोना पर भी निर्भर रहेगा। सितंबर में पहली लहर का पिक देखा गया था। सर्दियों में फिर महामारी का बढ़ा प्रकोप रह सकता है। लेकिन यदि हम कुल मिलाकर बात करें तो आर्थिक रिकवरी ने बड़ी उम्मीद जगा दी है।
आगे कुछ बड़ी चुनौतियां
भारत की अर्थव्यवस्था को आने वाले समय में कुछ बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जैसे कि यदि 8 प्रमुख उद्योग क्षेत्रों की बात की जाए तो अक्टूबर में उत्पादन 2.5% घट चुका है। लगातार आठवें महीने इसमें गिरावट देखी गई है। इनमें प्रमुख क्षेत्रों की बात करें तो उर्वरक, स्टील, पेट्रो रिफायनिंग, नेचुरल गैस, बिजली, कोयला और कच्चा तेल जैसे उद्योग हैं। इन्हें अर्थव्यवस्था की बुनियाद के रूप में माना जाता है।
वहीं यदि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर तक के राजकोषीय घाटे की बात करें तो यह 9.53 लाख करोड़ रुपए तक आ चुका है। यह घाटा मौजूदा वित्त वर्ष लक्ष्य के 119.7% के समान है। वहीं गत वर्ष इस समान अवधि में यह घाटा 7.96 लाख करोड़ रुपए था जो कि लक्ष्य के 102.4% के समान था। वहीं सरकार के रेवेन्यू की बात करें तो यह अप्रैल से अक्टूबर में 6.71 लाख करोड़ रुपए रहा है।