Tuesday, December 3, 2024
hi Hindi

ऐसी है भारत की बैंकिंग व्यवस्था

by Divyansh Raghuwanshi
412 views

हर प्रकार की व्यवस्था में परिवर्तन एवं विकास विश्व की एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में निरंतर प्रगति एवं विकास होता जा रहा है। व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रगति के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता पड़ती है। वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमें बैंकों पर निर्भर होना पड़ता है। समाज एवं उद्योग की वित्तीय आवश्यकताओं में भी निरंतर परिवर्तन एवं संवर्धन होता जा रहा है। अतः बैंको का संगठन वह स्वरूप नहीं है, जो प्राचीन काल में था।201810061157472 project image

प्राचीन काल में बैंक का कार्य एक व्यक्ति या फार्म करती थी,  जिन्हें साहूकार या महाजन कहा जाता था। इस प्रकार निजी बैंकों की पूंजी, साधन एवं क्षेत्र अति सीमित थे। और ब्याज दर काफी ऊंची हुआ करती थी इसलिए आधुनिक युग में यह प्रणाली संयुक्त स्कंध कंपनियों के रूप में बैंक स्थापित किए गए हैं, जिनके पास बहुत सारे पूंजी के साधन होते हैं।

वास्तव में भारतीय बैंकिंग व्यवस्था भारत की संस्कृति एवं सामाजिक व्यवस्था की भांति अपनी विविधताओं से परिपूर्ण हैं। भारत की बैंकिंग व्यवस्था को निम्नलिखित कुछ प्रमुख बिंदुओं द्वारा वर्णित किया जा सकता है-

संगठित एवं असंगठित क्षेत्र

अधिकतर बैंकिंग व्यवस्था संगठित क्षेत्र में ही रहती हैं। फिर भी ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में साहूकार, महाजन, श्रेष्टि, सेट इत्यादि नामों से एक विस्तृत एवं समांतर बैंकिंग व्यवस्था सक्रिय होती है।

ब्रांच बैंकिंग प्रणालीbank kiVG 621x414@LiveMint a3ad 1569927970159

भारत जैसे इतने बड़े भौगोलिक क्षेत्र में बैंकिंग सेवाओं के विस्तार के लिए प्रारंभ से ही ब्रांच बैंकिंग प्रणाली चलती आ रही है। देशी एवं विदेशी, निजी एवं सार्वजनिक, शहरी एवं ग्रामीण सभी क्षेत्रों में कार्यरत विभिन्न संगठनों वाली बैंकिंग व्यवस्था में शाखा प्रणाली ही प्रचलित है।

बैंकिंग सुविधा सभी के लिए

समाज के हर व्यक्ति को बैंकिंग सुविधा का लाभ पहुंचाने के उद्देश्य समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति को बैंकिंग में शामिल करने का लक्ष्य रखा है। इसके अंतर्गत विद्यार्थी, कृषक, ग्रामीण, दस्तकार, असंगठित श्रमिक सभी प्रकार के लिए खुला आमंत्रण बैंक द्वारा दिया जाता है, जिसमें न्यूनतम नियमों के साथ खाता खोलने की सुविधा होती है।

विस्तृत बैंकिंग क्रियाएं

वर्तमान में बैंक परंपरागत बैंकिंग क्रियाओं के अतिरिक्त विभिन्न सेवाएं भी प्रदान करते हैं। इसके लिए सरकार ने बहुत सारे निर्देश भी निर्मित किए हैं जिससे कि उन्हें प्रोत्साहन मिले। इन सेवाओं में विभिन्न प्रकार की सेवाएं सम्मिलित हैं जिनके लिए बैंक सहायक कंपनियों के संगठन द्वारा भी कुछ सेवाएं प्रदान करते हैं।

सरकारी बैंकों का सह अस्तित्वBanks kBFG

सरकारी बैंकों का गठन विभिन्न राज्यों द्वारा पारित सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत किया जाता है। यह एक तीन स्तर वाली व्यवस्था है जिसमें शीर्ष संस्था के रूप में राज्य सरकारी बैंक होता है। जिला स्तर पर केंद्रीय या जिला सहकारी बैंक कार्य करता है तथा ग्राम स्तर पर प्राथमिक ऋण समितियां पाई जाती हैं। यह बैंक एक अलाभकारी संस्था के रूप में कार्य करते है। सरकारी बैंक मूल रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से संबंधित कार्यों के लिए वित्तीय सेवाएं प्रदान प्रमुख रूप से करते हैं।

शाखाओ मे बढ़ोतरी 

जब से भारत में बैंकिंग व्यवस्था का विस्तार हुआ है, तब भारत में बैंकों की शाखाएं बहुत ही कम थी परंतु 2008 की स्थिति के अनुसार इन शाखाओं में काफी ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है। यह शाखाएं सभी प्रकार के बैंक समूह की शाखाएं हैं। चाहे वह राष्ट्रीयकृत बैंक को की शाखा हो या स्टेट बैंक की शाखा या फिर ग्रामीण क्षेत्रीय बैंक की शाखा हो।

SAMACHARHUB RECOMMENDS

Leave a Comment