13 वी शताब्दी का एक अनोखा मंदिर
13 वी शताब्दी का यह अनोखा मंदिर कोणार्क सूर्य मंदिर है, जो कि उड़ीसा राज्य में स्थित है। यह प्रचलित मंदिर सूर्य भगवान के प्रति आस्था उत्पन्न करता है। कोणार्क सूर्य मंदिर उड़ीसा राज्य में जगन्नाथ-पुरी से 36 किलोमीटर दूर है व यह उड़ीसा राज्य के पूर्व – दक्षिण दिशा में स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए विभिन्न साधन उपलब्ध है। इस मंदिर की रचना मन को प्रसन्न कर देती है। इस मंदिर के कुछ ऐसे रहस्य मय तथ्य है, जो कि इतिहासकार भी हल नहीं कर पाए हैं। इस कारण इसे 1984 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया । इस मंदिर का मुख पूर्व कि ओर, हाथी की सजीव आकृतियां, व सूर्य का रथ है जिसमें 12 विशालकाय पहिए लगे हुए हैं। इसके साथ-साथ मंदिर की संरचना इतनी जटिल है, कि इसको आम इंसान द्वारा बनाया नहीं जा सकता है।वैज्ञानिक मत है, कि इस मंदिर की आकृतियों की रचनाएं बिना आधुनिक युग के इंस्ट्रूमेंट के बनाना संभव नहीं है जबकि यह 13 वी शताब्दी में बनकर तैयार हो गया था। यही कारण है, कि यह मंदिर इस आधुनिक युग में भी इतना प्रचलित है।
इस मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है जिनसे विभिन्न आकर्षित मूर्तियों का निर्माण किया गया है। इस मंदिर का निर्माण कालीन समय 13 से 14 साल के बीच है। यह लगभग 1300 शिल्पियों द्वारा बनाया गया था। इसको बनाने में दिमाग की चतुराई व गहन अध्ययन करके बनाया गया है। माना जाता है, कि इस 13 वी शताब्दी के मंदिर का निर्माण यहां के राजा नरसिम्हा देव प्रथम ने करवाया था व इस मंदिर को आधुनिक युग में ” ब्लैक पगोड़ा ” नाम से भी जाना जाता है। इस पूराविद व वास्तुकार मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में देखा जाए तो यहां देश-विदेश से लाखों सैलानी मुख्यत: सूर्य ग्रहण के समय आते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस मंदिर का पर्यटन स्थल में एक महत्वपूर्ण स्थान है।
जगन्नाथ पूरी
देश के चार पवित्र धामों में से एक जगन्नाथ पुरी है, जो उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। ऋषि मुनियों का मानना है, कि अगर कोई व्यक्ति यहां पर 3 दिन व 3 रात रुकता है, तो बार – बार मृत्यु व जीवन से मुक्ति मिलती है। यहां की विशेष बात यह है, कि समुद्र की सीमा जगन्नाथपुरी से स्पर्श होती है। यह हिंदुओं के धार्मिक स्थलों में से एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहां जगन्नाथपुरी में देश के कोने कोने से लोग भगवान के दर्शन करने आते हैं। इसको कई वर्षों से विभिन्न प्रकार के नामों से जाना जाता है शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम, नीलांचल आदि। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था। इसमें छोटे-छोटे मंदिर, गुफा, पूजा कक्ष, तहखाने, व नृत्य के लिए बड़ा हॉल आदि की रचना की गई है। गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है इस मंदिर में, उनको बाहर से ही दर्शन करने पड़ते हैं।