क्या आप वास्तव में शब्द का अर्थ जानते हैं (Importance of word in hindi)
शब्द शक्ति का स्रोत है, शब्द स्वयं निराधार है, शब्द अपने आप ही है, शब्द नाशवान नहीं है शब्द ही अमृत स्वरूप है, शब्द स्वयं में प्रकाशमान है, शब्द निराकार और साकार का आधार है।
शब्द कह और अकह से न्यारा है अर्थात मूल शब्द वाणी से नहीं बोला जा सकता और मन से नहीं सोचा जा सकता अर्थात शब्द मन के चिंतन से पार है शब्द ही परम है।
शब्द एक सृष्टि चक्र का आधार
शब्द सृष्टि चक्र का आधार हैं, और शब्द स्वयं में प्रकाशमान है। शब्द का प्रकाश चेतन स्वरूप है। जब सृष्टि में आकर नहीं था तब चेतना सक्ता में अर्थात प्रकाश में निराकार में संयुक्त हुआ। प्रकाश को ही चेतन पुरुष कहा जाता है। यह परमात्मा से विनय स्वरूप है, उसमें ना आकार है और ना ही निराकार का महत्व है इसलिए वह सच्चिदानंद स्वरूप है।
शब्द की उत्पत्ति
सबसे पहले जड़ में आकाश उसके बाद वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से थल का निर्माण हुआ। और इन पांचों तत्वों को मिलाकर मनुष्य के शरीर का निर्माण हुआ। शब्द आधार चेतन और जड़ का है, चेतन और जड़ के संयोग से सृष्टि का चक्र चला और इन सब का आधार भी शब्द है। वही जगत के भाव में देखा जाए तो शब्दों को अच्छा बोलने से दूसरे लोग प्रसन्न हो जाते हैं और वही शब्द गुस्सा और क्रोध के भाव से बोलने से हम दूसरे लोगों को दुखी कर देते हैं, शब्द का हमारे जीवन में तथा हम से जुड़े विचारों में बहुत महत्व है।

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शब्द सबका आधार
पहले आकाश शून्य था इसके बाद तेजस्विनी जड़ सत्ता में विखंडन हुआ। इससे ग्रह, नक्षत्र, तारे बने। शब्द सब का आधार होने के कारण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन चेतन सपक्ता में उसकी गूंज रही या वह शब्द रहा। सृष्टि के दो विभाग एक चेतन और जड़ का हुआ, चेतन में बहाव के भाव से वायु प्रकट हुई। चेतन के तेज से अग्नि और चेतन की तरलता की गुण से जल प्रकट हुआ, चेतन की धारणा शक्ति से पृथ्वी आदि प्रकट हुई इन सब का आधार शब्द ही है।
शब्द रूपी आनंद
जब चेतन सत्ता शब्द की धुन प्राप्त कर लेती है, तो वह आत्मा सृष्टि चक्र से बाहर आ जाती है। शब्द रूपी आनंद में विलीन हो जाती है। उस शब्द को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले शरीर स्थिर और मन स्थिर तथा नाड़ी व प्राण के शब्द स्थिर होने चाहिए। इसके बाद चेतन स्थित हुआ तब उस शब्द की अनुभूति होती है। उसी को हम राम, भगवान, अल्लाह, ईश्वर कहते हैं। अर्थात ध्यान का शब्द से मिलना प्रभु प्राप्ति और सच्चिदानंद प्राप्ति है।
शब्द ही सर्वोपरि
ध्यान का शब्द से हटना सुषुप्ति है। ध्यान का स्वप्न में रहना अर्थात ध्यान का विचार में रहना जड़ता है, स्थूल मय रहना जगत है अर्थात पूर्ण निद्रा की अवस्था है।
ध्यान का स्थूल से हटकर विचार में पहुंचना स्थूल से सूक्ष्म का अनुभव करना है। सूक्ष्म से सुषुप्ति विचार को त्याग कर अर्थात चेतन में पहुंचना चेतन का कारण अवस्था है, फिर चेतन का शब्द से मिलना पूर्णानंद है अर्थात यह परम आनंद की प्राप्ति है इससे परे कुछ नहीं है।