जलवायु परिवर्तन कई चिंताओं का कारण होता है। हर साल किसी ना किसी तरह का संकट दुनिया पर प्रभाव डालता है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सभी देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा करते हैं। कवि सम्मेलन करके जलवायु से होने वाले नुकसान पर चिंता व्यक्त करते हैं। दुनिया में जलवायु परिवर्तन के संकट से कई प्राकृतिक आपदाएं होती हैं। कृतिका आपदाओं के होने से जनमानस को भोजन और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
जलवायु परिवर्तन से कम आय वाले देशों को अधिक नुकसान उठाना पड़ता है। पिछले 20 सालों में गरीब देशों पर इसका प्रभाव सबसे ज्यादा पड़ा हैं। कई लाख लोगों ने अपने जिंदगी से हाथ धोया है। प्राकृतिक आपदा से बचने के लिए कई योजनाएं बनाई जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन सम्मेलन शुरू कर दिया है। पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के द्वारा होने वाली मौसम की मार से बचना चाहती है।
मौसम कब अपना रुख बदल लेता है पता ही नहीं चलता। भयंकर गर्म हवाएं, सूखा और बाढ़ जैसी समस्याएं देश को हिला कर रख देती हैं। जिन देशों की आय अधिक है वह भी जलवायु संकट से नहीं बच सकते। औद्योगिक देश जापान और जर्मनी को भी मौसम की मार झेलनी पड़ी है। जलवायु परिवर्तन के बाद जो हानि पहुंचती है वह देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती है।
गर्मी का प्रभाव
कुछ सालों से गर्मी इतनी बढ़ गई है जिसके प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन को लेकर भी सभी देश चिंतित हैं। 2017 में चीन, अमेरिका, भारत और रूस में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन हुआ। धरती का तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है जिसके कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। यह दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता हैं।
जलवायु संकट की बढ़ती चिंता दुनिया में हलचल मचा रही है। ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स यानी वैश्विक जलवायु संकट सूचकांक ने दुनिया में होने वाले जलवायु परिवर्तन की ओर आगाह किया है। क्या करते कामनाएं बढ़ने से आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। संयुक्त राष्ट्र ने 25 पर जलवायु सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता व्यक्त की है। धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो दुनिया मैं होने वाली क्षति पूर्ति को रोकना असंभव होगा।
सभी देश जलवायु के भीषण प्रभाव से बचना चाहते हैं। जलवायु संकट से होने वाले नुकसान के लिए वित्तीय सहायता को महत्वपूर्ण मानते हैं। फिलीपींस, म्यानमार और हैती जैसे कम विकसित देशों को ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क का सामना करना पड़ता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात सबसे ज्यादा फिलीपींस को झेलने पड़ते हैं। हैप्पी में भी मौसम के कारण सबसे अधिक नुकसान होता है। जनधन की हानि के साथ मानसिक शांति भी चली जाती है।
कार्बन उत्सर्जन
चीन कार्बन उत्सर्जन कम करने तेजी से आगे बढ़ रहा है। चीन में कोयला जलाने की क्षमता को और अधिक बढ़ाया है। कोयले से चलने वाले पावर प्लांट को आर्थिक सहायता दी जा रही है। भारत की स्थिति कार्बन उत्सर्जन में बाकी देशों की अपेक्षा अच्छी है। भारत जलवायु परिवर्तन को लेकर सजग है। अपने लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में 15% तक तेजी से बढ़ चुका है।
जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता तो है लेकिन उसके उपाय भी रखने चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं को रुक तो नहीं सकते लेकिन उनको कम करने में जो भी योगदान हो वह करना चाहिए। देश में पेड़ पौधों को लगाने की दिशा में आगे आना चाहिए़। पर्याप्त पेड़ पौधे होने चाहिए आधी समस्या तो वैसे ही हल हो जाएगी।