Tuesday, November 5, 2024
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Mahashivaratri

Mahashivratri पर यह करेंगे तो बौद्धिक कार्यों के लिए होगा शुभ

by Divyansh Raghuwanshi
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Mahashivratri का दिन भगवान शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक माना जाता है। 

भगवान शिव जी की अति प्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा गया है। शिवरात्रि का अर्थ होता है वह रात्रि जिसका शिवत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है। प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि व्रत मनाया जाता है।

 इस वर्ष भी यह 11 मार्च को दिन में 2:21 पर लग रही है जो 12 मार्च को दिन में 2:21 तक रहेगी। पूजन विधि-इस दिन का शिव पुराण कथा वेद शास्त्रों में बड़ा महत्व है।

इस व्रत में प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निर्मित होकर तिलक लगाकर गले में रुद्राक्ष की माला पहन कर भगवान शिव जी का भक्ति भाव से पूजन करना चाहिए। इस दिन दूध दही से भगवान शिव जी के स्नान करवाना चाहिए।  भगवान शिव को सदभावना पूर्वक नमस्कार करना चाहिए।

Mahashivratri व्रत का महत्व-

Mahashivratri

Mahashivratri

इस व्रत का पुराणों एवं शास्त्रों में बड़ा महत्व है। स्कंद पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि का पूजन जागरण एवं उपवास करने वालों का पुनर्जन्म नहीं होता। अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मा जी, विष्णु जी एवं अन्य देवताओं के पूछने पर भगवान शिव जी ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। शिव पुराण में शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। अतः शिवरात्रि की पूजन भक्ति भाव के साथ अवश्य करना चाहिए।

देवों के देव महादेव की महिमा-

Mahashivaratri

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इस बार से शिवरात्रि के दिन शिव योग का संयोग मिल रहा है। यह सफलता दायक योग होता है। शिव पुराण के मुताबिक समुद्र मंथन के समय विष निकला था जो कि बहुत ही विनाशकारी था। इस स्थिति में भगवान शिव आगे आए तथा भगवान शिव ने विषपान किया। विषपान करने के बाद भगवान शिव के शरीर का तापमान बहुत ज्यादा हो गया तथा उन को सहन कर पाना बहुत मुश्किल हो गया। शिव जी ने फिर चंद्रमा धारण किया।

शिव पार्वती के विवाह जीवन के रहस्य-

Mahashivratri

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संसार के माता-पिता कहे जाने वाले शिव पार्वती के विवाह का दिन Mahashivratri के रूप में मनाया जाता है। शिव और पार्वती जी की जोड़ी संसार की बेमिसाल जोड़ी है, किंतु यही जोड़ी प्रेम समर्पण का बेजोड और उदाहरण बन गई है।

पार्वती संसार की पहली किशोरी हैं जिन्होंने कठोर संयम व्रत को धारण करके ब्रह्मचारी से प्रेम करने का दु: साहस किया था।

शिव तो बल तपस्या की भाषा जानते थे इसलिए पार्वती शिव के प्रति अति प्रेम को तपस्या में बदल देती थी। अखंड ध्यान की व्यवस्था में जहां कोई विचार, कोई क्रिया और कोई रूप प्रवेश नहीं कर सकता। किंतु प्रेम की तपस्या का फल कितना अद्भुत और अपराजेय है कि पार्वती वहां पर प्रवेश कर जाती है।

पार्वती के प्रण निवेदन के आगे अपने कार्य से भी बेबस और लाचार होकर पार्वती की तपस्या के आगे शिवजी भी दास बनकर खड़े हो जाते हैं। वासुदेव शरण अग्रवाल ने शिव पार्वती विवाह के छिपे हुई रहस्य को बहुत गंभीरता से बताया है। यह भी कहते हैं पार्वती सुषुम्ना नाड़ी का नाम है। मेरुदंड हिमालय है। इसी के भीतर सुषुम्ना नाड़ी है। शिव जी के विराट स्वरूप में लीन होकर पार्वती ने संसार की नींव रखी थी।

 महाकवि कालिदास जी ने कहा है कि शब्द और अर्थ को अलग नहीं देखा जा सकता, उसी तरह संसार के माता-पिता, शिव पार्वती और परमेश्वर को कोई अलग नहीं कर सकता है। शिव और पार्वती की जोड़ी प्रेम और समर्पण का बेजोड़ उदाहरण बन गई है।

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