Thursday, November 21, 2024
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Humans Body: शरीर का संचालक आपके भीतर ही है

by Divyansh Raghuwanshi
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Humans Body: खुद के अस्तित्व का बोध जो कराता है, वह है हमारा शरीर। शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है, पृथ्वी, अग्नि जल, वायु, आकाश। पृथ्वी से हमारे शरीर का जुड़ा होने के कारण यह पार्थिव कहलाता है। इसे चलाने वाली प्रक्रिया सूक्ष्म है उसके पीछे सूक्ष्म कारण है। सूक्ष्म शक्तियों से ही इन सूक्ष्म गतिविधियों की पोषण और नियमन का कार्य होता है। प्रत्येक जीव के अंदर एक ऐसी शक्ति है जो उसको संचालित करती है उससे ही हम आत्मा कहते हैं वही परमात्मा अर्थात ईश्वर है।

इंद्रियों का ज्ञान

Humans Body: मानव शरीर के अंदर मन में कुल 11 इंद्रियां पाई जाती है, तथा पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां भी मानव शरीर के अंदर उपस्थित हैं। सभी इंद्रियों के अपने-अपने कार्य होते हैं। शरीर की बहुत सारी इंद्रियां अलग-अलग कार्य करती हैं। त्वचा, आंख, नाक, कान और वाक सभी इंद्रियां के आपस में अलग-अलग काम होते हैं। कान में सुना तो सुनी बात देखने की इच्छा मन में उत्पन्न होती है। आंखें जो देखना चाहती हैं उसकी प्रेरणा मन में उत्पन्न होती है। इसी प्रकार सभी इंद्रियां आपस में एक दूसरे से कहीं ना कहीं जुड़ी होती हैं। एक विषय के संबंध में एक इंद्री दूसरी इंद्री के पीछे जुट जाती है, लेकिन मन हमारा आसपास की सभी विषयों से परे उस एक विषय तक पहुंच जाता है जिसकी वह तलाश कर रहा है।

हमारा शरीर ही ब्रह्मांड

कृष्ण भगवान ने गीता में अर्जुन से कहा है कि, जिस प्रकार एक ही सूर्य संपूर्ण पृथ्वी को प्रकाशित करता है उसी प्रकार एक ही आत्मा हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। हमारी नाक, त्वचा, कान, आंखें और मन बुद्धि सभी एक दूसरे से जुड़े होते हैं। लेकिन इन सभी इंद्रियों का सिर्फ एक ही आधार है वह हमारी आत्मा जो बहुत रूपों में प्रकट होती है।

Humans Body: शरीर के संचालक

Body operators
Body operators

मनुष्य जो कर्म करता है उन कर्मों का संचय हमारी आत्मा में हो जाता है, मानव जो कर्म करता है उसके फल को वह मृत्यु पश्चात संग्रह करके अपनी अगली यात्रा के लिए निकल जाता है। ज्ञान के भेद से शरीर में यह पांच प्रकार की कोस होते हैं इनमें चार कोस प्राणामय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय है। इनमें प्राणमय कोश के अंदर मनोमय कोश है, मनोमय कोश के अंदर विज्ञानमय कोश हैं, जिसमें आनंद विद्यमान है। आनंदमय कोश के अंदर आनंद ही आनंद है। ऐसे ही पंचकोशमय आत्मा कहा जाता है।

इन पांच कोशो वास्तव में आत्मा नहीं है, कोई अन्य तत्व ही हमारे अंदर विद्यमान है वह आत्मा है। जिसके यह पांच कोस स्थिर हो जाते हैं, वह वस्तुत ईश्वर है। इन पांचों कोसों की सहायता से मानव कर्म करता है और उन कर्मों के फल को इस जन्म में सम्मिलित करके अगले जन्म की यात्रा के लिए निकल जाता है।

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