Wednesday, November 13, 2024
hi Hindi

इतिहासकार गंगाराम सम्राट

by SamacharHub
471 views

श्री गंगाराम सम्राट का जन्म 1918 ई. में सिन्धु नदी के तट पर स्थित सन गाँव में हुआ था। उनके गाँव में शिक्षा की अच्छी व्यवस्था थी। पढ़ाई पूरी कर वे उसी विद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाने लगे। इसी समय उनका सम्पर्क आर्य समाज से हुआ। आर्य संन्यासियों की अनेक पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद कर उन्होंने साहित्य की दुनिया में प्रवेश किया। इसके बाद नौकरी छोड़कर वे सिन्धी समाचार पत्र ‘संसार समाचार’ से जुड़ गये और अनेक वर्ष तक उसका संचालन किया।

कुछ समय बाद उनकी ‘आर्यावर्त’ नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें आर्यों को भारत का मूल निवासी सिद्ध किया गया था। इससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। लोग उन्हें गंगाराम सम्राट कहने लगे। पुस्तक में इस्लाम के बारे में अनेक सच लिखे थे। मुसलमानों ने उसका विरोध किया। इस पर शासन ने पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया; पर तब तक वह पूरी तरह बिक चुकी थी।

उनके लेखन का प्रमुख विषय इतिहास था। उनके पुस्तकालय में अंग्रेजी, हिन्दी, गुजराती, अरबी तथा फारसी की 4,000 पुस्तकें थीं। 1953 के बाद के भारत, पाकिस्तान तथा अमरीका के सरकारी गजट भी उनके पास थे। वे कभी तथ्यहीन बात नहीं लिखते थे तथा लिखते समय देशी-विदेशी तथ्यों की पूरी जानकारी देते थे। उन्होंने सिकन्दर की पराजय, सिन्धु सौवीर, भयंकर धोखा, शुद्ध गीता, मोहनजोदड़ो..आदि अनेक पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। उनके पत्रों में शीर्ष स्थान पर ‘गो बैक टु वेदास’ (वेदों की ओर लौट चलो) लिखा रहता था।

देश विभाजन के समय गंगाराम जी ने सिन्ध छोड़कर भारत आ रहे हिन्दुओं की बहुत सहायता की। इसके लिए उन्होंने कराची बन्दरगाह पर ही नौकरी कर ली; पर वे स्वयं अपनी जन्मभूमि में ही रहना चाहते थे। उनका विचार था कि पाकिस्तान में शायद अब शान्ति का माहौल रहे। अतः वे 1952 तक वहीं रुके रहे; पर जब उन्होंने वहाँ हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचार क्रमशः बढ़ते देखे, तो वे अपना दोमंजिला मकान वहीं छोड़कर भारत आ गये। हाँ, वे अपनी पुस्तकों की पूँजी साथ लाना नहीं भूले।

भारत आकर वे कर्णावती, गुजरात में बस गये। यहाँ रहकर भी वे सतत लेखन एवं इतिहास के शोध में लगे रहे। 1969 में उन्होंने अपना मुद्रणालय प्रारम्भ किया और 1970 में वहाँ से ‘सिन्धु मित्र’ नामक साप्ताहिक पत्र निकाला। ‘लघु समाचार पत्र संघ’ के सहमन्त्री के रूप में भी उन्होंने अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। इतिहास, पत्रकारिता तथा सिन्धी साहित्य के लिए उनकी सेवाओं को देखते हुए भारत में प्रायः सभी प्रान्तों में बसे सिन्धी समाज ने तथा राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने उन्हें सम्मानित किया। ‘राष्ट्रीय सिन्धी बोली विकास परिषद’ ने उन्हें 50 हजार रु. एवं शील्ड प्रदान की।

भारत आने के बाद भी उनका पाकिस्तान के सिन्धी बुद्धिजीवियों से सम्पर्क बना रहा। उनके लेख पाकिस्तानी पत्रों में नियमित प्रकाशित होते रहे। उनकी अन्तिम पुस्तक ‘मताँ असाँखे विसायो’ का प्रकाशन पाकिस्तान के सिन्धु विश्वविद्यालय ने ही किया। उन्हें सिन्धु विश्वविद्यालय ने भाषण के लिए भी आमन्त्रित किया; पर वे भारत आने के बाद फिर पाकिस्तान नहीं गये।

20 अगस्त, 2004 को इतिहासकार गंगाराम सम्राट का निधन हो गया। उनकी इच्छानुसार मरणोपरान्त उनके नेत्र दान कर दिये गये।

#हरदिनपावन

 

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद

SAMACHARHUB RECOMMENDS

Leave a Comment