Goa मुक्ति आंदोलन की स्मृतियों को केंद्रीय बजट में जीवित और समृद्ध बनाने के लिए 300 करोड़ रुपए की राशि को वितरित किया गया है। इसकी सभी जगह प्रशंसा हो रही है। Goa मुक्ति आंदोलन की पृष्ठभूमि हमेशा से सर्वथा भिन्न रही है। राज्य सरकार Goa के मुक्ति दिवस पर 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशाल समारोह करने की योजना बना रहा है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इतना विशाल समारोह नहीं हो पा रहा है।
Goa का इतिहास
वास्कोडिगामा के नेतृत्व में 20 मई 1498 को पुर्तगाल के एक जहाजी बेड़े का पहला आगमन कालीकट केरल में हुआ था। इसके पुर्तगाल 25 नवंबर 1510 को पुर्तगालियों ने गोवा तथा उसके द्वीपो पर कब्जा कर लिया।
दक्षिण गुजरात के नगर हवेली पर भी 1779 में इन्होंने कब्जा कर लिया, पुर्तगाल साम्राज्य से मुक्त कराने का पहला प्रयास छत्रपति शिवाजी का है, लेकिन इन्हें पूरी तरीके से इस प्रयास में सफलता प्राप्त नहीं हुई, उनके उत्तराधिकारी छत्रपति संभाजी ने कई पुर्तगाली सैनिकों को कई युद्ध क्षेत्रों में हराया।
1961 के अंत तक गोवा को क्यों पराधीन रहना पड़ा?
इसके कई कारण थे, लेकिन इनमें दो प्रमुख मूल कारण थे, पहला यह है की एक पुर्तगाल स्वयं डॉक्टर सालाजार की फासिस्ट तानाशाही में जकड़ा था और एक कारण पुलिस राज्य भी था। बहुत लंबे समय तक पुर्तगालियों का गोवा में शासन रहा, इसका प्रमुख कारण यह था कि, गोवा को मुक्त कराने में भारत सरकार किसी प्रकार की सहायता या बल नहीं लगाएगी, भारत सरकार का यह कहना था।
गोवा का स्वतंत्रता संग्राम
इस संग्राम के दौरान 1928 में कांग्रेस पार्टी का गठन हो चुका था, गोवा कई सालों तक कांग्रेस कमेटी में समृद्ध था, लेकिन 1935 के “गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट” के अनुसार संवैधानिक सुधार किए गए इन सुधार के दौरान राष्ट्रीय कांग्रेस में ब्रिटिश भारत के अलावा अपनी अन्य कई शाखाओं से संबंध तोड़ दिया गया। इन्होंने Goa के राष्ट्रवादियों के आशा और मनोबल को तोड़ कर रख दिया। बाद में कई आंदोलन हुए, भारत छोड़ो आंदोलन, करो या मरो, इससे गोवा और दमन दीव मुक्ति का संचार भी तेजी से हुआ।
गोवा का मुक्ति संघर्ष
मार्च 1946 में गोवा कांग्रेस पार्टी के प्रस्ताव को लेकर खलबली मच गई कांग्रेस पार्टी के अंदर कई समाजवादी जिसमें डॉक्टर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेंद्र देव, अशोक मेहता आदि प्रमुख थे। 1942 में गांधीजी गिरफ्तार होने के बाद आंदोलन में आए। इन्होंने आंदोलन में आई शून्यता भरने का काम इन्हीं लोगों ने किया।
डॉक्टर लोहिया ने सविनय अवज्ञा आंदोलन पर बल दिया। लोहिया ने एक सभा बुलाई, सभा स्थल पर 20000 लोग इकट्ठे हुए थे। लोहिया भाषण देने जैसे ही खड़े होते हैं, वहां का प्रशासक निराड़ा रिवाल्वर लेकर खड़ा हो गया। इसके बाद डॉक्टर लोहिया और उनके मित्र डॉक्टर जूलिया गिरफ्तार कर लिए गए।
19 तारीख को दोनों को रिहा किया गया। गोवा में भी आजादी के नारे गूंजने लगे। इसके बाद भारत सरकार को भी विवश होकर Goa को मुक्त करवाना पड़ा। गांधी जी ने भी लोहिया के आंदोलन को अपना नैतिक समर्थन दिया।
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