Farmer movements: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों का विरोध लगभग पांच महीने से भी अधिक समय से चल रहा है। इसमें कई उतार-चढ़ाव को देखा गया है। गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों द्वारा की गई हिंसा को भी देश ने अपनी आंखों से साफ तौर पर देख लिया है। हालांकि, इससे पहले किसानों ने माहौल शांतिपूर्ण बना के रखा था किंतु दिल्ली हिंसा के बाद आंदोलन पर मौजूदा समय में कई सवाल है। अभी तक सरकार और किसानों के बीच 11 राउंड में बातचीत हुई है, जो 45 घंटे से अधिक की है।
यहां तक कि सरकार लिखित तौर पर यह आश्वासन दे चुकी है, कि वह 20 से अधिक बदलाव करने के लिए बिल्कुल तैयार है लेकिन दिल्ली में जाकर बात अब यह मुश्किल सा दिखाई पड़ता है। आजादी कि पहले भी देश में कई किसान आंदोलन हो चुके हैं जिनसे सरकार झुकने पर मजबूर हुई है। आजादी के बाद भी ऐसे कई आंदोलन हुए हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में-
दिल्ली बोट क्लब movement
राजीव गांधी सरकार के समय महेंद्र सिंह टिकैत ने 1 सप्ताह में 5 लाख किसानों को बोट क्लब पर इकट्ठा कर दिया था जिसकी वजह से सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई थी। यह बात 1988 की है और आंदोलन में 14 राज्यों के किसान आए थे। उन्होंने लाल चौक से इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया। बोट क्लब में किसानों के ट्रैक्टर और बैल गाड़ियां खड़ी हो गई थी। मजबूर होकर राजीव गांधी सरकार को 35 सूत्रीय चार्टर को स्वीकार करना पड़ा था।
नक्सलबाड़ी आंदोलन
किसानों द्वारा इस आंदोलन में यह मांग रखी गई की उन्हें बड़े काशतकारों को खत्म करना है। बंगाल में कम्युनिस्टों की सरकार थी जिसके कारण किसान आंदोलन उफान पर आ गए थे। जमींदार घबरा गए जिससे जमींदार बटाईदारों को बेदखल कर रहे थे। इसके बाद एक किसान ने दीवानी अदालत में एक आदेश अपने पक्ष में ले लिया था किंतु उसके बाद भी जमींदार ने कब्जा देने की बात नहीं मानी। इसका जवाब किसानों ने समिति और हथियारबंद दस्ते बनाकर दिया जिससे उन्होंने जमीन पर कब्जा शुरू किया। झूठे दस्तावेजों को जलाया गया था और आगे जाकर यह नक्सलवादी आंदोलन में बदल गया।
तेलंगाना आंदोलन
1947 से 1951 यानी सीधे आजादी के बाद तेलंगाना में अर्थव्यवस्था के खिलाफ आंदोलन चलाए गए थे। यह आंदोलन आंध्र प्रदेश राज्य में हुआ और इसका कारण था साहूकार और जमींदारों के शोषण की नीति के खिलाफ आंदोलन। गल्ला वसूली का कम कीमत पर होना भी इस आंदोलन का एक मुख्य कारण रहा था। आर्थिक समस्याओं से जुड़ी ही अधिकतर मांगे थीं और किसानों ने जमींदारों के विरुद्ध में एक गोरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया था। यह आंदोलन हालांकि असफल रहा था लेकिन कुछ पिछड़ी जातियों को इससे फायदा हुआ था।
आजादी के पूर्व हुए कुछ आंदोलन
- 1917 में महात्मा गांधी, नजर उल हक, राजेंद्र प्रसाद पानी नेताओं द्वारा Peasant movement किया गया था। आंदोलन का कारण नील की खेती का विरोध करना था और इसे चंपारण संघर्ष के नाम से जाना जाता है।
- फसलों के नष्ट हो जाने से 1919 में गुजरात में किसान लगान की मांग की गई थी और इस आंदोलन में भी गांधीजी और पटेल जैसे नेताओं ने मुख्य भूमिका निभाई। इसे खेड़ा संघर्ष के नाम से जाना जाता है।
- 1912 में मालाबार में अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी और अंग्रेजी शासकों के शोषण के खिलाफ यह आंदोलन किया गया था जिसे मालाबार किसान विद्रोह के नाम से जानते हैं।