हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से यूं तो हमारे रिश्ते बहुत खराब हैं और उसका कारण है वंहा पनपने वाला आतंकवाद। आज लगभगा पूरी दुनिया में अपनी खराब छवि के कारण बदनाम हुए पाकिस्तान की कुछ खास चीजे भी हैं, जो यूं तो हैं भारत की ही। लेकिन बटवारा होने के चलते यह सभी एतिहासिक किले पाकिस्तान के हिस्से में चले गए। आज हम आपको अपने इस लेख में उन्ही किलों के बारे में बताएंगे जो कभी भारत की शान हुआ करते थे।
डेरावर फोर्ट
डेरावर फोर्ट पाकिस्तान के बहावलपुर के डेरा साहिब से महज 48 किमी दूरी पर स्थित है। इस किले का निर्माण जैसलमेर के राजपूत राय जज्बा भाटी ने करवााया था। डेरावर फोर्ट की दीवारे 30 मीटर ऊंची है और इसका घेरा 1500 मीटर है। यह किला इतना आलिशान है कि चोलिस्तान के रिगस्तान से भी दिखाई देता है।
अल्तीत फोर्ट
अल्तीत फोर्ट आज से 900 साल पहले बनवाया गया था। यह किला पाकिस्तान के गिलगित बल्टिस्तान की हुंजा वैली में स्थित है। यह किला हुंजा स्टेट के राजाओ का किला था, जो मीर कहलाते थे। कुछ समय पहले ही इस किले की हालत बहुत खराब हो चुकी थी, जिसे ठीक कराने के लिए हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को जापान की मदद मांगनी पड़ी और तब जा कर ही यह किला सही हुआ।
रोहतास फोर्ट
शेरशाह सूरी द्वारा बनवाया गया रोहतास फोर्ट आज पाकिस्तान की शान कहलाता है। इस किले का निर्माण 1540-1547 के बीच कराया गया था। किले के निर्माण के लिए 30 हजार मजदूर लगाए गए थे। इस किले में 12 दरवाजे लगे हैं और यह कभी मुग्लों के भी अधीन रहा था।
रॉयल फोर्ट
करीब 20 हेक्टेयर में फैला लाहौर का रॉयल फोर्ट (शाही किला) पाकिस्तान के मशहूर एतिहासिक किलों में से एक है। माना जाता है कि इस किले को साल 1560 में मुगल बादशाह अकबर ने बनवाया था। आलमगीर दरवाजे से इस किले में प्रवेश किया जाता है, जिसे साल 1618 में जहांगीर ने बनवाया था। 1400 फीट लंबा और 1115 फीट चौड़ा यह किला यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है।
रानीकोट फोर्ट
पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जमशोरो में किर्थर रेज के लक्की पहाड़ पर स्थित रानीकोट फोर्ट को ‘सिंध की दीवार’ भी कहा जाता है। दरअसल, यह किला 32 किलोमीटर में फैला हुआ है और यह दुनिया का सबसे बड़ा किला भी है। इस किले के निर्माण को लेकर तरह-तरह की बातें होती हैं। कोई कहता है कि यह किला 20वीं सदी की शुरुआत में बना है तो कोई कहता है कि इस किले को सन् 836 में सिंध के गर्वनर रहे पर्सियन नोबल इमरान बिन मूसा बर्मकी ने कराया था, लेकिन असल में इसे किसने बनवाया था, कोई नहीं जानता।