एक समय ऐसा था कि जब पृथ्वी पर की कृषि व्यवस्था एवं उस पर उत्पादित होने वाले खाद्य पदार्थों की मात्रा अथाह थी पर आज उस स्थिति में परिवर्तन आ गया है। अब वह सिर्फ पर्याप्त की श्रेणी में आ गई है। संतोष कि बात यह है, कि यह सामग्री पुनः प्राप्त की जा सकती है। अगर बहुत बुद्धिमता से उत्पादन का प्रबंध हो तो पूरे विश्व में रहने वाले प्राणी वर्ग को उसके खाने-पीने तथा अन्य पदार्थों की पूर्ति की जा सकेगी लेकिन इसके लिए प्राकृतिक विविधता का उपयोग करना होगा जिसे आज हम जैविक विविधता के नाम से जानते हैं। शुरू में विश्व में खाद्यान्न की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से हरित क्रांति की कल्पना की गई थी। जिसे 1968 में संयुक्त राज्य के कृषि विभाग के निदेशक विलियम गैड ने नाम दिया था।
उन्होंने पाया कि अन्न की विशेष जाति से ही भारत तथा पाकिस्तान में गेहूं तथा फिलिपिंस में चावल का उत्पादन हुआ है। बाद में भारत में पांच प्रमुख गेहूं चावल मक्का बाजरा और ज्वार पर शोध कर ज्यादा उत्पादन करने वाली किस्में तैयार की। यही कृषि क्षेत्र में विविधता कहलाई। लेकिन धीरे-धीरे यह जाने जाना लगा कि वह विविधता सजीव पदार्थों तथा वस्तुओं में भी है। एवं प्रगति के लिए इसका उपयोग संभव है, तभी से जैविक विविधता की उपयोगिता को प्रयोग में लाया जाने लगा जैविक विविधता मे ह्रास के कारण निम्नलिखित हैं-
प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण
मानव अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए प्रकृति का दोहन कर रहा है। अतः यह सबसे बड़ा कारण है कि प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण जैव विविधता में कमी आ रही है।
अतिदोहन
प्रकृति में पाए जाने वाले पेड़ पौधे एवं जंतुओं का आर्थिक रूप से बड़े स्तर पर उपयोग होने के कारण उनकी जनसंख्या में निरंतर कमी होती जा रही है जिसके फल स्वरूप ब्लूटूथ होते जा रहे हैं और अति दोहन का शिकार हो रहे हैं।
कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा
कीटनाशकों एवं खरपतवार को समाप्त करने के लिए उपयोग में होने वाला रसायन पेड़ पौधे एवं जंतुओं को भारी मात्रा प्रभावित करता है। इसके लगातार उपयोग से विभिन्न प्रकार की जीव जंतुओं की प्रजातियां नष्ट होती जा रही हैं। इसी कारण से जैव विविधता निरंतर घटती जा रही है।
शिकार द्वारा
मनुष्य प्राचीन काल से ही अपने भोजन एवं विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए जीव-जंतुओं पर आश्रित रहा है, इस कारण से उसका वह निरंतर शिकार कर रहा है इस कारण से जैव विविधता में निरंतर कमी आती जा रही है।
प्रदूषण द्वारा
आज विश्व में पर्यावरण प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इसके कारण आज वायु,जल, मृदा, इत्यादि प्रदूषित हो गए हैं।
जिसके कारण जीव धारियों को सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही है। पीने के लिए शुद्ध जल तथा पौधों की वृद्धि के लिए शुद्ध मृदा प्राप्त नहीं हो पाती है। परिणाम स्वरूप वे विभिन्न प्रकार की बीमारियों के शिकार होते जा रहे हैं। जिससे लगातार इनकी मौत होती जा रही है। यही कारण है कि जैव विविधता में कमी होती जा रही है।
प्राकृतिक आपदाएं द्वारा
प्राकृतिक आपदाएं जैसे तूफान चक्रवात ज्वालामुखी का फटना बाढ़ सूखा महामारी आकार इत्यादि घटनाओं के कारण भी जैव विविधता में कमी आ रही है।