सबसे पहले तो हम आपको ये बताना चाहेंगे कि वास्तव में सोशल फ़ैसिलिटेशन होता क्या है? सोशल फ़ैसिलिटेशन मनोविज्ञान के अंतर्गत आने वाला एक टर्म है जो कि व्यक्ति की पर्सनालिटी को दर्शाता है।यहाँ पर्सनालिटी का मतलब व्यक्ति के उस व्यक्तित्व से है जो वह अन्य लोगों या भीड़ में दर्शाता है।
जैसा कि कहा जाता है कि हर किसी की एक पर्सनालिटी होती है और हम सभी इसी बात पर विश्वास भी करते हैं लेकिन हैरानी की बात ये है कि मनोविज्ञान इस बात का समर्थन नहीं करता है! यदि हम साइकॉलजी की बात करें तो हमें कहना पड़ेगा कि इंसान की कई पर्सनालिटीज हो सकती हैं।
इस बात को आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि हम अकेले में अलग तरह का व्यवहार करते हैं और भीड़ में दूसरी तरह का। अब आप सोच रहे होंगे कि हम दो तरह कि व्यक्तित्व को क्यों दर्शाते हैं? साथ ही साथ आपके मन में यह भी विचार आ रहा होगा कि कहीं यह किसी प्रकार की कोई बीमारी तो नहीं! हम आपको बताते चलें कि इस तरह का काम करना अर्थात दो तरह के व्यक्तित्व को दर्शाना किसी तरह की कोई बीमारी नहीं है।
अकेले में हम हर वो कार्य करते हैं जो हम चाहते हैं। कभी कभी तो हम कुछ ऐसे काम भी कर बैठते हैं जिनको यदि हम सोसाइटी में शेयर करना चाहें तो हमें रुकना पड़ता है क्योंकि सोसाइटी उन्हें अपनाने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं होती।
ख़ैर ये सब बातें छोड़िए, अब बात करते हैं दूसरे व्यक्तित्व की! जैसा कि हमने कहा कि हम दूसरा व्यक्तित्व तब दर्शाते हैं जबकि हमारे आस पास कुछ लोग होते हैं। इसका सीधा सा कारण ये होता है कि हम उस वक़्त ख़ुद को लेकर बहुत सतर्क होते हैं क्योंकि हमें पता होता है कि कुछ लोग हमें देख रहे हैं और ज़ाहिर सी बात है कि जब हमें पता हो कि हमें कुछ लोग देख रहे हैं तो ऐसे में हम ख़ुद को बहुत अच्छा ही दिखाना चाहेंगे।
हम ये नहीं कह रहे कि हम वास्तव में अच्छे नहीं होते हैं। बिलकुल अच्छे होते हैं लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम अच्छे हो न हों, हमें ख़ुद को इस तरह दिखाना होता है कि अगला हमें पसंद करें। दोस्तों, इसी को सोशल फ़ैसिलिटेशन कहते हैं।
उम्मीद है कि अब आपको सोशल फ़ैसिलिटेशन अच्छे से समझ में आ गया होगा! अब बात आती है कि हम सोशल फ़ैसिलिटेशन के विषय में विस्तार से चर्चा क्यों कर रहे हैं? इसका कारण यह है कि सोशल फ़ैसिलिटेशन हमारी ज़िंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हम चाहे न चाहें लेकिन हमें अपने सोशल फ़ैसिलिटेशन को मेंटेन करके ही चलना होता है।
बात तब बिगड़ती हुई नज़र आती है जब हम सोशल फ़ैसिलिटेशन के चलते ख़ुद को टॉर्चर करना शुरू कर देते हैं। अब सवाल उठता है कैसे? तो आइए आपको बताते हैं कि जब हमारा सोशल फ़ैसिलिटेशन हम पर हावी हो जाता है तो हम उससे कैसे प्रभावित होते हैं।
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कहीं वो हमारे बारे में ग़लत तो नहीं सोचता
सोशल फ़ैसिलिटेशन का सबसे पहला निगेटिव पहलू यही है कि हम दूसरों को लेकर इतना सोचने लगते हैं कि हम ख़ुद को परेशान करने लगते हैं। हमें हर वक़्त यही डर सताया करता है कि कहीं कोई इंसान हमारे बारे में कुछ ऐसा न सोच ले जो कि हम नहीं चाहते हैं।कुल मिलाकर हमारा ज़्यादातर ध्यान इस बात पर रहता है कि अगला बंदा हमारे बारे में कैसा में सोच रहा है!
हम ये नहीं कह रहे हैं कि हमें दूसरों की परवाह नहीं करनी चाहिए बल्कि हम ये कहना चाहते हैं कि हमें हर काम को लिमिट में करना चाहिए फिर चाहे वह दूसरों की परवाह ही क्यों न हों। दूसरों के चक्कर में ख़ुद को परेशान करना भी सही नहीं है। आप जैसे हैं वैसे ही रहें बस कोशिश करें कि वे काम न करें जो दूसरों को हर्ट करते हैं।
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कुछ भी करूँ पर दूसरा ख़ुश होना चाहिए
ये दूसरी चीज़ है जो हम सोशल फ़ैसिलिटेशन के हाथों मजबूर होकर करते हैं! होता ये है कि हम दूसरों की नज़रों में ख़ुद को पॉज़िटिव और अच्छा साबित करने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं। इसके साथ साथ हम ये भी ख़याल रखते हैं कि हम ख़ुद को कितना भी परेशान क्यों ना कर लें लेकिन अगला बंदा हर हाल में हम से ख़ुश ही होना चाहिए।
यक़ीन मानिए ये चीज़ भी आपकी मेंटल हेल्थ को प्रभावित करती है। ये अच्छी बात है कि आप दूसरों को ख़ुश करना चाहते हैं लेकिन कभी भी ख़ुद को नाख़ुश करके दूसरों को प्रसन्नता देने का प्रयास न करें।
इन दो बिंदुओं के अलावा और भी कई ऐसी चीज़ें है जो हम सोशल फ़ैसिलिटेशन के कारण करते हैं। ये अच्छी बात है कि हम एक वेल सोशल बीइंग की तरह बिहेव करना चाहते हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम ख़ुद को परेशान कर लें।
हमें दूसरों के साथ अच्छे से पेश आना चाहिए। मुस्कुराकर बातें करनी चाहिए और अपनी बॉडी लैंग्वेज का ख़याल रखना चाहिए। इसके साथ साथ कुछ छोटी छोटी चीज़ें भी जो मैंनर्स के अंदर आती है उन्हें भी फ़ॉलो करके हम अपना सोशल फ़ैसिलिटेशन पॉज़िटिव बना सकते हैं बजाय इसके कि हम ख़ुद को हर्ट करें।