राजस्थान की एक जगह बांलीकुल में 800 ई.पू. में एक ऐसा सीढ़ीदार कुंआ तैयार किया गया था, जिसे बनाने वाले स्थानीय कारीगर थे. यहां के राजा चंदा के नाम पर ही इस बावड़ी को नाम दिया गया चंदा या चांद बावड़ी.
इस बावड़ी का सब से पुराना भाग आठवीं शताब्दी में तैयार किया गया था. कमाल यह है कि ये सीढ़ीदार कुंआ 18वीं शताब्दी तक तैयार होता रहा और यह हिस्सा कुएं के सब से ऊपरी भाग में आज भी देखा जा सकता है.
चांद बावड़ी में कुल 2500 संकरी सीढि़यां हैं और ये सीढि़यां नीचे से ऊपर तक 13 मंजिलों तक फैली हैं.चूंकि राजस्थान में पानी की बेहद कमी है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी बचाने के लिए ही इस बावड़ी को तैयार किया गया था. अगर हम बावड़ी के सब से नीचे बनी सीढि़यों पर पहुंच जाएं तो यहां का तापमान ऊपर के हिस्से के तापमान से करीब 5 डिग्री कम होता है.
जब इस इलाके में भीषण गरमी पड़ती है तो आसपास के लोग इसी बावड़ी में इकट्ठा हो जाते. इस बावड़ी में एक ऐसा स्थान भी है जहां पर शाही लोग जमा होते थे. इस बावड़ी को आज भी यहां के दौसा इलाके में देखा जा सकता है. जिस गांव में ये बावड़ी बनी है, वह है आभानेरी.
आज इस बावड़ी को लोग कौतूहल से सिर्फ देखने आते हैं. बावड़ी के ज्यामितीय आकार की नकल करना भी आज मुश्किल है. सीढि़यों की वजह से यहां धूप और छांव से जो आकार उभरते हैं, वे पर्यटकों को रोमांच से भर देते हैं. चांद बावड़ी के एक तरफ मंदिर भी तैयार किया गया था. इस सीढ़ीदार कुएं की कुल गहराई 100 फुट के करीब है.