बाइपोलर डिस्ऑर्डर का शिकार आमतौर पर बड़े लोग होते हैं। मगर बच्चों में भी ये समस्या पाई जाती है। ऐसे बच्चों में दो तरह का व्यवहार पाया जाता है। कभी ये बच्चे बहुत अधिक आत्मविश्वास से भरे होते हैं और कभी बहुत ज्यादा हताश और निराश हो जाते हैं। बाइपोलर डिस्आर्डर एक प्रकार का दिमागी विकार है, जो बच्चों की मनोस्थिति को प्रभावित करता है। बाइपोलर डिसऑर्डर का प्रभाव कई दिनों से लेकर कई महीनों तक बना रह सकता है।
खोए-खोए रहते हैं ऐसे बच्चे
बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे ज्यादातर अपने ख्यालों में खोए रहते हैं। ख्यालों में खोए रहने के कारण वो हर बात को ज्यादा सोचने लगते हैं, जिससे तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे बच्चों के दिमाग में हजारों बातें चलती रहती हैं जिन पर उनका काबू नहीं रहता। कई बार नींद न आने के कारण भी बच्चे इस रोग का शिकार हो जाते हैं। दरअसल नींद की कमी से अवसाद होता है और अवसाद बाइपोलर डिस्आर्डर का प्रमुख कारण है।
आत्मविश्वासी होने पर दिखते हैं ये लक्षण
छोटी सी बात पर बहुत ज्यादा खुश हो जाना
जरूरत से ज्यादा जोखिम उठाने का साहस
खतरों भरे खेल और कामों की तरफ आकर्षित होना
हाजिर जवाब होना और कई बार बिना जरूरत बोलना
उत्साह की वजह से नींद ना आना
हताश होने पर दिखते हैं ये लक्षण
आत्मविश्वास में कमी आना
छोटी सी बात पर ज्यादा दुखी हो जाना
अपने साथ हर समय गलत होते महसूस करना
तनाव और डिप्रेशन में रहना
किसी भी नए काम को करने में उत्साह न दिखाना
अत्यंत दुखी और उदास
खुद से नाउम्मीद हो जाना
कई बार खुदकुशी की इच्छा
कौन बच्चे होते हैं प्रभावित
आमतौर पर बाइपोलर डिस्आर्डर से मिलते-जुलते लक्षण हर बच्चे में देखने को मिलते हैं। बच्चों का सामान्य व्यवहार होता है एक पल में खुश होना और दूसरे पल दुखी हो जाना। मगर धीरे-धीरे बड़े होने पर बच्चों में से ये आदतें जाती रहती हैं, जबकि बाइपोलर डिस्आर्डर के शिकार बच्चों में ये समस्या लगातार बनी रहती है। आमतौर पर ये समस्या बच्चों में 13 साल की उम्र के बाद देखने को मिलती है।
बच्चों से तनाव के बारे में बात करें
अगर आपका बच्चा ज्यादातर समय उदास रहता है, तो उससे तनाव के बारे में बात करें। उससे उसकी समस्या पूछें और जितना संभव हो, मदद करें। बच्चों को कहें कि वो आपको हर समस्या के बारे में बताएं।