Thursday, November 21, 2024
hi Hindi

Bashir Badr never knew that his lines will one day so aptly describe the corona virus scenario of lockdown and social distancing

by SamacharHub
174 views

यूँ ही बे-सबब न फिरा करो
कोई शाम घर में भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है
उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा
जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है
ज़रा फ़ासले से मिला करो

SAMACHARHUB RECOMMENDS

Leave a Comment