Monday, March 17, 2025
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Kanchanavan

Kanchanavan में श्री राम और जानकी का डोला पहुंचने के बाद होली के रंग-गुलाल में झूमें श्रद्धालु

by Divyansh Raghuwanshi
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श्री राम और जानकी का ढोला दोपहर शनिवार को नेपाल के जनकपुर मंदिर से निकलकर Kanchanavan पहुंचा, आते ही रंग-गुलाल की वर्षा होने लगी, साथ ही  त्रेता युग से चली आ रही परंपरा के अनुसार होली के 10 दिन पहले ही भगवान राम और सीता की होली के साथ मिथिला में फागोत्सव शुरू हो गया।

कहा जाता है कि श्री राम और सीता जी विवाह के बाद साथ में मिथिला दर्शन के लिए निकले थे। 15 दिन भ्रमण करने के बाद जब वे सातवें दिन Kanchanavan पहुंचे तो वह होली का दिन माना जाता है। कहा गया है कि इस Kanchanavan में  नवदंपति के साथ पहली होली खेली थी। इस फागोत्सव में राम जी और माता सीता जी के साथ मिथिला के आम लोग भी शामिल थे। उसी समय से आज तक प्रत्येक वर्ष हजारों साधु-संत, महिला, पुरुष Kanchanavan पहुंचकर होली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

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जानकी मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया है कि, ऐसी मान्यता है कि दूल्हा श्री राम हर वर्ष मां जानकी और उनकी सहेली के साथ होली मनाने Kanchanavan आते हैं। इसलिए इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। सुबह से शाम तक श्रद्धालु बड़ी संख्या में Kanchanavan आते हैं। जैसे ही वहां पर श्री मिथिला बिहारी और किशोरी जी की डोली पहुंचती है सभी एक दूसरे पर जमकर रंग गुलाल लगाना शुरू कर देते हैं। 

कंचनबन के निवासियों ने बताया है कि, आज भी भगवान राम जी और माता जानकी की पहली होली की परंपरा कायम है। Kanchanavan के लोग आज भी इस परंपरा का निर्वाह करते हुए रंग तैयार करते हैं और बड़ी खुशी से होली का त्योहार मनाते हैं। चावल तथा गेहूं के आटे में हल्दी और गेंदे के फूल को मिलाकर पीला तथा गुलाब की पत्तियों को मिलाकर लाल रंग, और सिंघाड़े के फूल से गुलाबी और बेल के पत्तों को मिलाकर हरा रंग तैयार किया जाता है। इस Kanchanavan को लेकर पुराणों में कई कथाओ को बताया गया है।

कहा जाता है कि भगवान राम 15 दिन की मिथिला की परिक्रमा पर निकले तो सातवें दिन Kanchanavan में ही रुके थे। यहीं उन्होंने माता जानकी और उनकी सहेलियों के साथ होली खेली थी। जब श्री राम सहित उनके चार भाइयों के विवाह के बाद अयोध्या जाने लगी तो राजा जनक ने Kanchanavan से सैकड़ों बैलगाड़ियों पर सोने-चांदी के आभूषण उपहार स्वरूप बेटी दामाद को भेज दिए थे। कहा गया है कि, अयोध्या के महल में इन उपहारों को रखने की जगह नहीं बची थी तो उन्हे खाली जगह पर रखा गया था। जिससे बाद में मणि पर्वत के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

विवाह के बाद परिक्रमा के दौरान श्री राम और माता जानकी सहित चारों भाई Kanchanavan पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां चारों ओर जंगल ही जंगल है। वहां के निवासी वनवासियों ने उन्हें बताया कि, जंगल में पानी की समस्या है, तो इस समस्या का निदान करने के लिए राम जी ने बाण चलाया और धरती से जल प्रवाह शुरू हो गया। जलस्रोत पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं तथा स्नान करते हैं।

कंचनवन को लेकर यह भी कहा गया है कि एक बार भगवान शिव मां पार्वती के साथ भ्रमण कर रहे थे, तो इस दौरान पार्वती जी का कुंडल गिर गया। महादेव जी ने उसी समय कहा कि, जिस जगह पर माता पार्वती का कुंडल गिरा है उसे भविष्य में Kanchanavan के नाम से पहचाना जाएगा।

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