महिलाओं के अधिकार अपने आप में एक कंट्रोवर्शियल इश्यू माने गए हैं। ये हम नहीं कह रहे बल्कि हम इस बात को सोसाइटी के दृष्टिकोण से देख रहे हैं।
हमारे समाज में पुराने समय से एक प्रथा चली आ रही है कि हम अपनी बेटी को सर आँखों पर बिठाते हैं, उसे प्यार करते हैं लेकिन जब बात किसी और की बेटी की आती है तो हम बिलकुल उलटा काम करते हैं। उससे प्यार करना तो दूर बल्कि उसके साथ थोड़ी बहुत इंसानियत भी दिखा दें तो मान लीजिए जीवन सफल हो गया लेकिन ऐसा होता कहॉं है? ये बात हम घरेलू हिंसा को ध्यान में रखकर कर रहे हैं।
आज समाज में वास्तव में महिलाओं को एक अच्छा दर्जा मिल गया है लेकिन इस अच्छे दर्जे में आने वाली महिलाओं की संख्या काफ़ी कम है जबकि वे महिलाएँ जो आज भी अधिकारों से वंचित हैं उनका आंकड़ा अपने पैमाने को फाड़कर निकलता हुआ दिखाई देता है। सबसे बड़ा सवाल ये है कि घरेलू हिंसा के लिए अपराधी कौन होता है?
चलिए कल्पना करते हैं कि हमारी बेटी की शादी हुई और वह अपने ससुराल चली गई वहाँ पर उसके घर वाले उसे प्रताड़ित करने लगते हैं और उस पर घरेलू हिंसा करते हैं। वो लौटकर हमारे पास आती है और हमें अपने दुःख के बारे में बताती है और कहती है कि अब वह वापस कभी नहीं जाएगी। अब हमारा रिएक्शन होता है कि नहीं बेटा, वही तुम्हारा घर है और अब तुम्हें वहाँ पर जैसे तैसे गुज़ारा करना ही होगा क्योंकि ये हमारी इज़्ज़त का सवाल है।
अब आपके मन में यही चल रहा होगा कि आख़िर हमने आपको ये कहानी ठीक उस सवाल के बाद कि “घरेलू हिंसा के लिए अपराधी कौन होता है” के बाद क्यों सुनाई है? तो दोस्तों दरअसल हम आपको एक पूरी थ्योरी देने के बाद समस्या का समाधान जानना चाहते हैं। इस कहानी के उपसंहार में हमें बताइए कि क्या अपराधी वे हैं जो बेटी पर घरेलू हिंसा कर रहे हैं या वे जो बेटी को फिर से उसी नरक में ढकेलना चाहते हैं!
अगर आपको लगता है कि नहीं सीधे सीधे अपराधी उसके ससुराल वाले ही हैं तो आपको अपना नजरिया बदलना होगा! ससुराल वाले जो उसके ऊपर घरेलू हिंसा कर रहे हैं उससे कहीं ज़्यादा अपराधी की श्रेणी में वे लोग आते हैं जो लड़की का साथ देने के बजाय उसे अपनी खोखली इज़्ज़त के नाम पर कुरबान करना चाहते हैं।
हम जानते हैं कि हमने एक बेहद महत्वपूर्ण टॉपिक उठाया है और इस पर जितनी भी चर्चा की जाए कम है लेकिन चूंकि हमारे पास समय और शब्दों की एक सीमित मात्रा ही है तो हम संक्षिप्त में ही अपनी बात कहना चाहेंगे।
घरेलू हिंसा में अपराधी कौन है और पीड़ित कौन है इस बात पर ध्यान देने के बजाय हमें ये सोचना चाहिए कि घरेलू हिंसा को ख़त्म कैसे किया जा सकता है! वैसे एक उपाय है जिसके ज़रिए चुटकियों में घरेलू हिंसा को ख़त्म किया जा सकता है और वो है सोच में बदलाव लेकिन ये हमारे समाज में पूरी तरह अप्लाई करना लगभग नामुमकिन ही है किन्तु फिर भी यदि आप चाहते हैं कि घरेलू हिंसा का नामो निशान मिट जाए तो फिर इस उपाय को कारगर करना ही होगा।
इस उपाय को मुमकिन बनाने के लिए महिलाओं को ख़ुद आगे आना होगा। उन्हें ही अपने अधिकारों की लड़ाई लड़नी होगी और ये सिद्ध करना ही होगा कि वास्तव में वे कोई चीज़ नहीं बल्कि इंसान हैं। जिस तरह हम अपनी बेटी को प्यार करते हैं ठीक उसी तरह अगर हम बहू को भी प्यार करने लगे तो घरेलू हिंसा का अस्तित्व दुनिया से ही मिट जाएगा।