बच्चों की अच्छी परवरिश उनके हेल्दी भविष्य की नींव रखता है। पेरेंट्स के लिए बहुत ज़रूरी है कि वे इस बात का ख़याल रखें कि उनके बच्चे के जीवन में होने वाली सभी चीज़ें एक बैलेंस वे में हों।
बात अगर बच्चों के रूटीन लाइफ़ की जाए तो ऐसे में पेरेंट्स को ये ध्यान रखना होगा कि उनके रुटीन में ऐसी चीज़ें शामिल हों जो उनका फिजिकल, मेंटल और मॉरल सभी तरह का विकास करने में सहायक हों। रूटीन लाइफ़ को किस तरह सेट या बैलेंस्ड किया जाए इस बात को हम नीचे दिए गए पॉइंट्स से समझ सकते हैं। तो आइए इन पर एक नज़र डालते हैं।
1. टाइम मैनेजमेंट शेड्यूल
टाइम मैनेजमेंट शेड्यूल का मतलब ये है कि आपको अपने बच्चे के अंदर ये आदत डेवलप करनी होगी कि वह समय की महत्ता को समझ सके। आपको बच्चे को एक डिसिप्लिन तरीक़े से ज़िंदगी गुज़ारना सिखाना होगा। इसके लिए आप टाइम मैनेजमेंट शेड्यूल का एक चार्ट भी बना सकते हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप बच्चे को टॉर्चर करके रख दें। टाइम मैनेजमेंट करते समय इस बात का ख़याल रखें कि बच्चे को कुछ देर का ख़ाली समय ज़रूर मिलें ताकि वह अपने विचारों के साथ नई नई चीज़ों को एक्सप्लोर कर सके।
2. पढ़ाई बर्डन न बनने दें
आप चाहते हैं कि आपका बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर या पायलट बन जाए और इसके लिए आप अपने बच्चे को जी जान से पढ़ाई करवाने में जुटे रहते हैं, ये काफ़ी अच्छी बात है लेकिन आपको इस बात का ख़याल रखना होगा कि आप बच्चे को पढ़ाई के लिए फ़ोर्स न करें। आपका मेन टारगेट ये होना चाहिए कि आप पढ़ाई में बच्चे का इंटरेस्ट पैदा करें ना कि पढ़ाई को बच्चे के लिए बर्डन बनने दें। आपको दोनों चीज़ों में फ़र्क करके चलना होगा।
3. इमोशनल स्टेटस को चेक करते रहें
इमोशनल स्टेटस को चेक करने का मतलब ये है कि आपको समय समय पर इस बात पर ध्यान देना होगा कि कहीं आपका बच्चा किसी ऐसी साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम को फ़ेस तो नहीं कर रहा जो कि उसे मेंटली रिटार्टेड कर दें जैसे कि कभी कभी होता है कि बच्चा किसी बात की चिंता में इतना गुम हो जाता है कि उसे स्ट्रेस की प्रॉब्लम हो जाती है।
बात तब बिगड़ती हुई नज़र आती है जबकि बच्चा माता पिता से अपनी बात कह नहीं पाता है और ये आशा करता है उसके माता पिता बिना कुछ कहे उसे समझ लें। अगर आप अपने बच्चे की ये ख़्वाहिश पूरी करना चाहते हैं तो आपको अपने बच्चे का इमोशनल स्टेटस चेक करते रहना होगा।
4. आपका इंटरफ़ेयर
यक़ीनन आपको अपने बच्चे के किसी भी तरह की मैटर में इंटरफ़ेयर करने का पूरा अधिकार होता है और आपको करना भी चाहिए लेकिन इस बात का ख़याल रखते हुए कि आपके इंटरफ़ेयर का दायरा बेहद स्मूद और बैलेंस्ड हो। बच्चे की लाइफ़ में इंटरफ़ेयर करें उसकी प्रॉब्लम्स को जानें और उन्हें सॉल्व करने में उसकी मदद करें लेकिन उसे इतनी ज़्यादा मदद न दे दें कि वह आपके ऊपर डिपेंड हो जाए।