वैसे तो हमारा समाज पुरुषवादी समाज यानी मेल डॉमिनेन्ट सोसाइटी है। हम पुरुषों से अक्सर यही उम्मीद लगाकर बैठे रहते हैं कि वे तो बहुत मज़बूत होते हैं। उन्हें किसी तरह का कोई दर्द नहीं होता है और न ही उन्हें किसी की सहानुभूति की आवश्यकता होती है। चूंकि ये बातें कहीं न कहीं सच भी हैं तो हम इनके पीछे छुपे बारीक़ अर्थों को समझ नहीं पाते हैं।
जी हाँ, ये सारी बातें जो हमने कहीं बिलकुल सच हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि पुरुषों को इंसानों की कैटेगरी से एकदम अलग करके रख दिया जाए। पुरुष भी इंसान होते हैं तो उनमें भी भावनाए और दर्द होना सामान्य सी बात है। अगर आप सोचते हैं कि पुरुषों को किसी तरह की कोई सहानुभूति की आवश्यकता नहीं होती है तो आइए हम आपको बताते हैं कि पुरुषों को सहानुभूति की आवश्यकता क्यों होती है।
1. वे आंसुओं को छिपाते हैं
अक्सर देखा जाता है कि महिलाएँ आसानी से किसी भी बात पर रो देती हैं लेकिन पुरुष कितनी भी बड़ी बात क्यों न हो जाए रोते नहीं है। पुरुषों के आँसू हमें लगभग नहीं ही देखने को मिलते हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि उन्हें कोई बात कभी महसूस नहीं होती।पुरुषों को भी अक्सर रोना आ जाता है लेकिन वे अपने आंसुओं को आसानी से छिपा जाते हैं।
2. दर्द बर्दाश्त करते हैं
पुरुषों को सहानुभूति मिलनी चाहिए और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वे अपने दर्द का रोना नहीं रोते बल्कि उसे हिम्मत से बर्दाश्त करते हैं। जी हाँ, अगर आप सोचते हैं कि पुरुषों को दर्द नहीं होता है तो आप ग़लत हैं।
3. दुःख को शेयर नहीं करते हैं
जैसा कि हमने कहा कि पुरुष अपना दर्द बर्दाश्त करते हैं और यही वजह है कि पुरुष अपना दुख जल्दी किसी से शेयर नहीं करते हैं फिर चाहे वह उनका कितना भी क़रीबी मित्र क्यों न हो।
दूसरी तरफ़ महिलाएँ अपना दुःख आसानी से किसी भी इंसान से शेयर कर लेती हैं। ये भी एक रीज़न है कि पुरुषों को सहानुभूति मिलनी चाहिए।
4. उन्हें पुरुषत्व का स्टेटस बनाना होता है
पुरुष बेहद मज़बूत होते हैं, वे किसी भी तूफ़ान को आसानी से झेल लेते हैं, उन्हें रोना नहीं आता है, ये सारी बातें समाज पुरुषों से एक्सपेक्ट करता है और इन्हीं के चलते पुरुषों को अपना स्टेटस काफ़ी संभलकर बनाना होता है। हम कह सकते हैं कि पुरुषों को समाज में अपने पुरुषत्व का स्टेटस बनाकर रखना होता है। ये भी एक कारण है कि उन्हें सहानुभूति ठीक उसी तरह दी जानी चाहिए जिस तरह महिलाओं को मिलती है।
5. समाज की हर ऊँच नीच से सामना होता है
पुरुषों के कंधों पर परिवार को चलाने की ज़िम्मेदारी होती हैं। लड़कियाँ भले ही जॉब करती हों लेकिन ये उनके ऊपर बिलकुल भी थोपा नहीं जाता है कि वे सब कुछ छोड़छाड़ कर परिवार की ज़िम्मेदारी उठाएं। पुरुषों के मामले में इस बात की अनिवार्यता होती है कि उन्हें परिवार को चलाना ही है। जब वे रोज़गार के लिए बाहर निकलते हैं तो उन्हें समाज की कई प्रकार की ऊँच नीच का सामना करना होता है। इस कारण के तहत भी पुरुषों को सहानुभूति मिलनी चाहिए।
इस तरह आप देख सकते हैं कि पुरुष वास्तव में किस तरह की सिचुएशन का सामना करते हैं। हम ये नहीं कह रहे कि पुरुष कमज़ोर होते हैं या महिलाओं की तरह नाज़ुक होते हैं लेकिन हम ये भी नहीं कह रहे हैं कि वे इंसान न होकर पत्थर हैं। तो अब हम महिलाओं से यह उम्मीद करते हैं कि वे अपने पुरुष मित्रों के लिए अपने नज़रिए में थोड़ा सा बदलाव अवश्य करेंगीं।