रामायण कथा में हम सभी ने रामेश्वरम पर पुल निर्माण की कथा सुनी है। भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र पर पुल का निर्माण किया था। रावण की लंका तक पहुंचने के लिए भगवान श्रीराम ने एक पुल का निर्माण किया था। रामेश्वरम के स्कूल को रामसेतु कहते हैं। आज भी एडम ब्रिज के नाम से जाना जाता है। उस समय फुल बनाना आसान बात नहीं थी। पानी पर पत्थरों के द्वारा पुल का निर्माण किया गया। यह बड़ी रहस्यमय घटना है, पत्थरों को पानी के ऊपर तैरते हुए देखा जाता है।
राम सेतु का निर्माण
श्री राम के 14 वर्ष के वनवास के दौरान राक्षस रावण ने पंचवटी में मारीच के माध्यम से सीता जी का हरण किया था। सीता को हरण करके लंका मे अशोक वाटिका में रखा था। देवी सीता की खोज करते हुए भगवान श्री राम ऋषि मुख पर्वत पर वानरों के राजा सुग्रीव और हनुमान की सहायता से लंका को खोज पाए। लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र को पार करना था। भगवान राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे उन्होंने समुद्र देवता से मार्ग मांगा। समुद्र देवता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो भगवान श्री राम बाण की सहायता से सूखने लगे। तब समुद्र देव प्रकट हुए और उन्होंने कहा आपके सेना में नल और नील ऐसे वानर है भगवान विश्वकर्मा ने वरदान दिया है। नल और नील की मदद से रामेश्वरम पर पुल बनाया गया। पत्थर पानी पर तैरने लगे। यह विचित्र घटना है की राम का नाम लिखते ही वह पत्थर पानी पर करते थे। वैज्ञानिक भी इस तथ्य को नहीं सुलझा पाए।
रामसेतु का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक कई वर्षों से इन पत्थर के रहस्य का शोध कर रहे थे। वैज्ञानिकों ने शोध से पता लगाया कि रामसेतु मैं जो पत्थर इस्तेमाल हुए हैं, वह खास पत्थर थे। प्यूमाइस स्टोन नामक पत्थर ज्वालामुखी के लावा से आते हैं। जब लावा गर्मी और वातावरण के गर्म हवा आपस में मिलती है, तो स्वयं को कण में बदल लेते हैं और पत्थर बन जाते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा ऐसे पत्थर जन्म लेते हैं जिन में छेद होता है। छेद के कारण स्पंजी आकार ले लेते हैं और इनका वजन भी कम हो जाता है। इन पत्थरों मैं हवा रहती है जिसके कारण यह पानी में डूबते नहीं। नासा में सैटेलाइट की मदद से इस पुल की खोज की।
नासा ने स्वयं दावा किया है कि भारत के रामेश्वरम से श्रीलंका के मन्नार दीप तब पुल बना है। रामेश्वरम के पूल में फ्यू माइस स्टोन पत्थरों का ही उपयोग किया गया है। बड़ी ही अजब घटना है इतने वर्ष पहले भी चमत्कार होते थे। आज के इतने साल पहले पुल का निर्माण हुआ जो आज भी है। हम इस बात को झुठला नहीं सकते की राम सेतु का निर्माण भगवान श्री राम ने नहीं किया। धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से रामसेतु श्रीराम द्वारा बनाया गया पुल है। उस समय टेक्नोलॉजी नहीं होती थी लेकिन फिर भी रामसेतु का निर्माण किया गया। नल और नील दो ऐसे इंजीनियर थे जिन्होंने पत्थरों को पानी पर तैरने का रास्ता निकाला। वैज्ञानिक भी सेतु निर्माण को झुठला नहीं पाए। रामायण तो जीवन तो है जो पग पग पर मनुष्य का सहारा है।