पर्यावरण को खराब करने के पीछे बहुत से लोग जिम्मेदार हैं जो अपने निजी फायदे के लिए कभी वायु को प्रदूषित करते हैं तो कभी जल को प्रदूषित करते हैं। इन सब में सबसे ज्यादा नुकसान पेड़ो को भी पंहुचाया जाता है। आपने आज तक लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए लड़ते देखा होगा लेकिन क्या कभी आपने उन लोगों के बारे में सुना है जिन्होने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान तक गवा दी थी। आज हम आपको अपने इस लेख में ऐसे ही आंदोलनों के बारे में बताएंगे जिनमें पर्यावरण की रक्षा हेतु लोगो ने अपनी जान तक दे दी।
जोधपुर 1730
यह आंदोलन 1730 में तब शुरू हुआ जब जोधपुर के राजा अभय सिंह ने अपने महल निर्माण के लिए सैनिकों को लकड़़ी लाने के लिए कहा। सैनिक राजस्थान के खेजरी गांव पंहुचे तो वंहा विश्नोई समाज की काफी महिलाएं पंहुच गई और पेड़ों से लिपट कर उन्हे कटने से बचाने लगी। विश्नोई समाज पेड़ों की पूजा करता था, इसलिए उन्होने पेड़ों को काटने से रोका और इसकी शुरूआत अमृता देवी ने की, सैनिको ने पेड़ काटते समय ही अमृता देवी को भी मार ड़ाला, यह देख उनकी बेटी भी पेड़ से लिपट गई और सैनिकों ने उन्हे भी मार डाला। इसके बाद जैसे ही यह खबर गांव तक पहुंची तो वंही की सभी महिलाएं पेड़ो को बचाने पहुंच गई और इस बीच लगभग 300 महिलाओं ने पेड़ो को बचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
1973 उत्तराखंड चिपको आंदोलन
इस आंदोलन की शुरूआत 1973 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) में शुरू हुआ और देखते ही देखते चमोली जिले में फैल गया। इसी आंदोलन की शुरूआत बह्गुणा ने की थी उन्होने ही पेड़ों का महत्व लोगों को समझाया जिसके बाद महिलाओं ने इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और पेड़ों को कटने से बचाने के लिए वह पेड़ो से लिपट कर खड़ी हो जाती थी। आखिरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहूगुणा को हस्तक्षेप करना पड़ा और उन्होंने इसके लिए कमिटी बनाई। कमिटी ने ग्रामीणों के पक्ष में फैसला दिया।
केरल 1980
केरल की साइलेंट वैली लगभग 89 वर्ग किलोमीटर में फैला जंगल है जहां कई खास प्रकार के पेड़-पौधे और फूल पाए जाते हैं। 1980में सरकार ने कुंतिपुजा नदी के किनारे बिजली बनाने के लिए एक बांध बनाने का प्रस्ताव दिया। इससे लगभग 8.3 वर्ग किलोमीटर जंगल के डूब जाने का खतरा था। तब कई पर्यावरण प्रेमी, एनजीओ और स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। बढ़ते आंदोलन को देखते हुए सरकार को पीछे हटना पड़ा।
अप्पिको आंदोलन
कर्नाटक राज्य में भी एक ऐसा ही आंदोलन देखने को मिला था जिसका नाम अप्पिको आंदोलन था। इसकी खास बात यह थी की इसका कोई लीडर नहीं था। हालांकि इसकी शुरूआत पंदुरुग हेगड़े नाम के व्यक्ति ने की थी। इस आंदोलन का मकसद जंगलों के व्यवसाय़ीकरण से बचाने के लिए किया गया था। इस आंदोलन के जरिए न केवल लोगो ने पेड़ो को कटने से बचाया बल्कि जंहा पेड़ काटे गए थे वंहा नए पेड़ भी लगाए गए।
नर्मदा नदी आंदोलन
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की प्रमुख नदी नर्मदा को बचाने के लिए शुरू हुए नर्मदा आंदोलन ने दुनिया भर में सुर्खियां बोटरी।इस आंदोलन की शुरुआत ऐक्टिविस्ट मेधा पाटेकर, बाबा आम्टे, आदिवासियों, किसानों और सोशल वर्कर्स ने मिलकर की थी। इसकी शुरुआत नर्मदा पर बन रहे सरदार सरोवर बांध से विस्थापित हुए लोगों की पुनर्वास की व्यवस्था करने के लिए हुई थी। बाद में आंदोलनकारियों ने नदी को बचाने के लिए 130 मीटर के बांध की ऊंचाई कम करके 88 मीटर करने की मांग की। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बांध के लिए 90 मीटर की अनुमति दी।