Thursday, April 10, 2025
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सच में बहुत याद आते हैं आप काका

by Sunil Negi
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ये यादगार तस्वीर सन 1991की दिल्ली के कैनिंग लेन की उस बंगले की है जहां काका का सबसे पहला केन्द्रिय कार्यालय बना था और यहीं से उनके चुनाव का संचालन शुरू हुआ था. सदी के लाजवाब सुपर स्टार, जिनका में शुरू से ही जबर्दस्त फैन रहा, उनसे ये मेरी दूसरी मुलाकात थी. समय था करीब 2 बजे दोपहर का.

इससे पहले मेरी काका से सबसे पहले, इस मुलाकात से पांच दिन पहले ही दिल्ली के अशोका होटल के स्वीट में करीब 10 बजे रात को मुलाकात हुई थी, जिसमे वरिष्ट पत्रकार और पूर्व केन्द्रिय मंत्री राजीव शुक्ला भी उपस्थित थे. अपने जीवन में पहली बार करीब दो घंटों तक चली इतने करीब और खुशनुमा माहौल में हुई इस बेहतरीन या यूँ कहुं ऐतिहासिक मुलाकात को मैं भला कैसे भूल सकता हूँ .

इसी दिन 1991 में काका का नयी दिल्ली संसदिय क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट फाइनल हुआ था और वे राजीव गांधी को मिलकर तभी होटल लौटे थे. बातचीत के दौरान काका ने मुझसे प्रभावित होकर मुझे उनके चुनाव में मदद करने का निवेदन किया खासकर पत्रकार और अनुभव होने के नाते मीडीया मेनेज करने का विशेष आग्रह किया जिसपर वरिष्ट पत्रकार राजीव शुक्ला ने भी मोहर लगा दी. मीटींग खत्म होते ही काका ने कहा नेगी साहब में कल मुंबई जा रहा हूँ और फिर तीन चार दिनों में दिल्ली लौट रहा हूँ ताकी चुनाव तक दिल्ली में रह सकूँ.

काका ने मुझे दिल्ली में उनके आने पर पुन : मिलने का आग्रह किया और मीटिंग खत्म हुई. मैंने सोचा की काका जिनके आगे पीछे हाजारों लोग घूमते हैं भला मुझे कहां याद रखने वाले. मैं ऐस मुलाकात को एक दिवा स्वप्न की तरह भूल गया. खैर चार दिन बाद मैने अखबारों में काका के नामिनेशं के बारे में पढा. उनहोनें नयी दिल्ली से भाजपा के भारी भरकम प्रत्याशी लाल कृष्ण आडवानी के विरुद्ध बतौर कांग्रेसी प्रत्याशी परचा भर दिया था और उनकी रैली में हजारों हजार समर्थक थे. मैने सोचा क्यों न काका से मिला जाय. मैंने पता किया की वो कहाँ मिल सकते हैं .

मैं रफी मार्ग आई ई एन एस स्थित अपने अखबार के कार्याल्य में था. मैंने शिवानन्द चन्दोला जी को फोन मिलाया. वो मेरे कार्यालय आ गये. वहीं से हम दोनो पैदल केनिंग लेन पहूँचे जहां काका हमें गेट पर ही मिल गये. वो भरत उपमन्यू जी के साथ गाड़ी में केंपेनिंग के लिए निकल ही रहे थे की मैंने गेट से ही आवाज लगायी सर , सर , काका गाड़ी से बाहर निकले. कहा; वाट . मैने पूरे विश्वास के साथ कहा . सर , डोंट यू रिकोगनाइज मी . आयी एम सुनील नेगी. मेट यू ऐट आशोका दि अदर डे. यू आसक्ड मी टू मीट यू . ….. काका मुस्कुराये और ड्राईवर को गाड़ी को किनारे लगाने को कहा. मैं हैरान था उन्होने मुझे गले लगाया, अंदर ले गये और फिर बंगले के पीछे वाले छोटे से बगीचे में ले गये .

हाल चाल पूछा और बाकायदा निवेदन भरे अन्दाज में कहा : नेगी, देर इस टोटल मेस हियर . प्लीस हेल्प मी . मेनेज माई मीडीया फराम टुमारो . प्लीज़. ऊपर से वहां मौजूद राजीव शुक्ला ने भी इस पर ये कहकर मोहर लगादी की नेगी से बेहतर आपका मीडिया कोई और मेनेज ही नहीं कर सकता. ही इस जस्ट एक्सीलेंट. काका बहुत खुश थे और उस दिन के बाद मैं बतौर मीडिया एडवाईजर उनसे ज़ुड़ा रहा . कई अनुभव लिए. लेकिन मैंने इस बीच पत्रकारिता के मिशन नहीं छोड़ा . काका के साथ ऐसे बहुत अनुभव हैं जिन्हे में समय समय पर आपसे साझा करता रहूँगा . उपरोक्त हकीकत के मेरे बहुत ही सम्मानिय मित्र भरत अभीमन्यू गवाह हैं जो वर्षों तक काका के बेहद करीबी रहे और भूपेश रसीन , विपिन ओबेरोय व राजेश पांडे भी .
सच में बहुत याद आते हैं आप काका

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