मध्य भारत विंध्यांचल के पहाड़ों का इलाका है। किले बनाने के लिए इसलिए पहाड़ी चुनी जाती थी क्योंकि ऊंचाई से दूर-दूर तक नजर रखी जा सकती है और शासकों को हमेशा हमले का डर रहता है इसीलिये उन्हें नज़र रखने के लिये जगह चुनना पड़ती थी। मध्य भारत के ग्वालियर की कोपगिरी पहाड़ी पर बना हुआ है गवालियर का भव्य किला। 2.5 km लम्बी व 1 km सकरी पहाड़ी पर बनाया गया है ग्वालियर का किला। किले की भव्यता को हिंदुस्तान के सबसे बेहतरीन किलों में गिना जाता है।
सबसे ज़्यादा शासकों ने राज किया

ग्वालियर पर बने इस किले पर बहुत से शासकों ने राज किया। इतने शासकों ने शायद ही किसी और क़िले पर शासन किया होगा। हिंदू, अफ़गानों, अंग्रेजों, दुर्ग, मुगलों और मराठों ऐसे कई अलग-अलग धर्मों के शासकों ने इस क़िले पर शासन किया। इस किले में 1300 साल पुराना रहस्य पाया जाता है। माना जाता है 7 से 15 शताब्दी तक के बीच जैन धर्म के गुफा मंदिर में मूर्तियां बनाई गई थी जिसमें 58 फीट ऊंची आदित्यनाथ की मूर्ति इसका मौजूदा नमूना है। 2.5 कि.मी. मीटर लंबा व 1 किलो मीटर चौड़ा है ये किला। यहां की मीनारे 104 मीटर लंबी है, जो कि ज्यादातर खड़ी व सीधी हैं। यह किला सबसे खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों में गिना जाता है। भारत के पहले मुगल बादशाह बाबर ने इस किले को ‘भारत के किलो के हार में जड़ा मोती’ कहा था। महल की कारीगरी अपने टाइल के काम के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ की शिल्पकारी की गिनती प्रसिद्ध इमारतों में की जाती जाती है। हर पतथर पर एक रहस्मयी तरास्कारी है।
महल का रहस्य
मान मंदिर 1686 में तोमर वंश के राजा ने बनवाया था। दुर्ग, पठान अफगान, मुगलों के राज के बाद यह किला रहस्य से जुड़ गया। इस किले में है एक अंधेरा तहखाना जहां का रास्ता जेल तक जाता है कहा जाता है। यहाँ कैदियों की चीख सुनाई देती हैं और यह रास्ता कालकोठरी का है जहां बदबूदार अंधेरी लगी रहती है। यहां पर जिसे भी ले जाया जाता है उसके लिए जीवन तो नहीं ज्यादातर मौत ही संभव होती है और उन्हें मुगल अफीम खिलाते थे। जिससे उनकी जिंदगी बत्तर हो जाती थी उस कालकोठरी में जाने के बाद जो बादशाहों के करीबी थे।
जो पसंदीदा थे वह महलों में रहते थे और जिनपर बादशाह भड़क जाते थे उनकी ज़िन्दगी मौत में बदल जाती थी। बादशाह कभी रिश्तों को नहीं देखते थे। उन्हें जिस पर भी गुस्सा आता, वह उन्हें ले जाकर उसी अंधेरी कालकोठरी में डाल देते थे। मान मंदिर के नीचे बने हॉल में कैदियों को यातना दी जाती थी। यहां पर कैदियों को लोहे के बने छल्लो से लटकाया जाता था। मुगलों का रिश्तेदार होना ज्यादातर अपने ऊपर मुसीबत मोल लेना ही था। इनकी न लाश किले से बाहर आती थी या कहां जाती थी इसका किसी को पता नहीं है। यह अभी भी रहस्य ही है। इस किले में मुगलों के राज के बाद बहुत सारे रहस्य दफन है जो कि आज तक किसी को नहीं पता।